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प्रमैयची धिनी टीका पद १८ सू० १६ अंतक्रियापदनिरूपणम् कुर्यात् ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नैरयिकाः खलु भदन्त ! अमुरयारेषु अन्तक्रियां कुर्युः ? गौतम ! नायर्थः समर्थः, एवं यारद् बैमानिकेषु, नवरं मनुप्येषु अन्तक्रियां कर्युरिति पृच्छा, गौतम ! अस्त्येके कुर्युः, अस्त्ये के नो कुर्युः, एवम् असुरकुनारा यावद् वैमानिकाः, एवमेव चतुविंशति श्चतुर्विशतिर्दण्डका भवन्ति, नैरयिकाः खलु भदन्त ! किम् अन
| নন্দিগ্ধ বঙ্গবন। शब्दार्थ-(जीवेणं भंते ! अंतकिरियं करेजा ?) हे भगवन् ! क्या जीव अन्तक्रिया करता है ? (गोशमा !) हे गौतम ! (अत्थेगईए) कोई (करेजा) करता है (अत्थेगइए णो करेजा) कोई नहीं करता है (एवं नेरइए जाव वेमाणिए) इसी प्रकार नारक यावत वैमानिक ।
(नेरइए णं संते ! नेरइएस्तु अंतकिरियं करेजा ?) हे भगवन् ! नारक क्या नारकों में-नरकति में रहना हुआ-अत्तक्रिया करता है ? (गोयमा ! लो इगटे समहे) हे गौत्तम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है (नेरच्या णं भंते ! असुरकुमारेसु अंतकिरियं करे जा ?) हे सगवन ! च्या नारक अलुरशसारों में अन्तक्रिया करते हैं ? (गोयमा णो इणडे लम्हे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है (एवं जाव वेमा. णिए) इसी प्रकार यावत् नानिक (नवरं) विशेष (मणूसेसु अंतकिरियं करेजत्ति पुच्छा?) मनुष्यों में अन्तक्रिया होती है, ऐसा प्रश्न ? (गोयमा ! अत्थेतिए करेजा, अत्थेगतिए णो करेजा) हे गौतम ! कोई करता है, कोई नहीं करता (एवं असुरकुलारा जाव क्षेत्राणिए) इसी प्रकार असुरकुमार यावत् वैमानिक (एवमेव चउवीसं चउवीसं) इसी प्रकार चौवीस-चौवीस (दंडगा अवंति) दंडक होते हैं।
અન્તકિયાદિ વકતવ્યતા हाथ-(जीवेणं भंते । अंतकिरियं करेजा ?) वन्! शु. १ मन्या ४२ छ १ (गोयमा) 3 गौतम ! (अत्यंगइए) is (करेजा) ४२ छ (अत्थेगइए णो करेजा) 5 नयी ४२ता (एवं नेरइए जाव वेमाणिण) से प्रारे ना२४ यावत् वैमानि.
(नेरइए णं भंते | नरइएसु अंतकिरियं करेजा ) 3 मसवन् ! ना२४ शु नामांना२४ गतिमा २हीन-मन्तयिा ४२ छ १ (गोयमा ' णो इणटे समद्दे) हे गौतम | 20 मथ समय नथी (नेरइया णं भो । असुग्कुमारेसु, अन्तकिरियं करेजा ?) भगवन् शु ना२४ मसु२४मारास मन्त ४२ छ १ (कोयमा । णो इणद्वे सम8) गौतम | 241 2A समय नथी (एवं जाव वेमाणिए) से प्रारे यावत् नि (नरं) विशेष (मसेसु अंतकिरियं करेज्जति पुच्छा ?) मनुष्यामा सन्तयिा थाय छे सेवा प्रश्न ? (गोगमा अत्थेगइए करेजा अत्येगइए णो करेजा) 3 गौतम ४२ छ, ४ नथी ४२ता (एवं असुरकुमारा जाव वेमाणिए) मे रे असुरभा२ यावत् वैमानि: (एवमेव चउवीसं चवीस) मेकर ४ारे यानी-यावीस (दंडगा भवति) ४३४ थाय छे.