________________
৪৫২
प्रमेयपोधिनी टीका पद १८ सू) ९ सम्यक्त्ववतां सम्यक्त्यकालनिरूपणम् तत्र खलु यः स सादिसपश्वसितः स जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृप्टेन पट पष्टिः सागरोपमाणि सातिरेकाणि, मिथ्याष्टिः खलु भदात ! पृच्छा, गौतम ! मिथ्या दृष्टि स्त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तयथा-अनादिकोऽपर्यवसितो व!, अनादिको वा सपर्यवसितः, सादिको वा सपर्यवसितः, तत्र खलु यः स सादिकः सपर्यासितः स जघन्येन अन्तर्गुहृतम्, उ.कृष्टेन अनन्तं कालम्, अनन्ता उत्सर्पिण्यासपिण्यः कालसः, क्षेत्रतः अपार्द्धः पुद्गलपरिवर्तों देशोनः, सम्यगमिथ्यादृष्टिः खलु पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तमुहर्तम्, उत्कृष्टेन अन्तर्मुहूर्तम्, द्वारम् ९ । सू० ९।। उनमें जो सादि सपर्यवसित है (से जहणेणं अंतोमुहुर्त) वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त (उक्कोसे छावहि सागरोवमाई साइरेगाइं) उत्कृष्ट सातिरेक छयासठ सागरो. पम तक (मिच्छदिट्ठी णं भंते ! पुच्छा ?) हे भगवन् ! मिथ्यादृष्टि के विषय में पृच्छा ? (गोयमा ! मिच्छादिट्ठी तिविहे पण्गत्ते) हे गौतम ! मिथ्यादृष्टि जीव तीन प्रकार के कहे हैं (तं जहा-अणाहए अपज्जवसिए अणादिए वा सपज्जव सिए, सादिए वा सपन्जवसिए) वे इस प्रकार-अनादि अनन्त, अनादि सान्त
और सादि सान्त (तत्थ णं जे से सादिए सपजवसिए) उनमें जो सादि सान्त है (से जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं) वह जघन्य अन्तमुह तक, उस्कृष्ट अनन्त काल तक (अणंताओ उस्सप्पिणि ओसप्पिणीओ कालओ) काल की अपेक्षा से अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियां (खेत्तो अवह पोग्गलपरिय देसूणं ) क्षेत्र की अपेक्षा से देशोन अपार्ध पुद्गल परिवर्तन तक
(सम्मामिच्छादिट्ठीणं पुच्छा?) सम्पमिथ्यादृष्टि के विषय में प्रश्न ? (गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्त) हे गौतम! जघन्य अन्तमुहूर्त (उकोलेणं अंतोमुहतं) उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त द्वार ९।। सपज्जवसिए) तमामा २ साल स५५सित छ (से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं) धन्य मन्तभुत सुधी ( उकोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई ) Gष्ट साति३४ छ।स। सा५म अधी.
(मिच्छादिदी णं भंते । पुच्छा) सावन (मथ्या घटना विषयमा २७ ? (गोयमा। मिच्छादिदी तिविहे पण्णत्ते) गीतम! मिथ्या6ि241 Y Rना ४ा छे (तं जहा अणाइए अपज्जवसिए वा अणाइए सपज्जवसिप, सादीए वा सपज्जवासिए) ते ॥ ॥२मनात अनन्त, सन सान्त भने साहि सान्त (तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिए) तमा रेसा सान्त छ (से जहण्णेण अंतो मुहुत्तं उक्कोसे गं अणतं क.लं) ते न्यथा मन्तइतर सुधी, Gष्ट अनन्त सुधी (अणंताओ उस्सप्पिणी ओसप्पिणीजो कालओ) मनी अपेक्षा मनन्त हत्सपि-मसपिये। (खेत्तओ अवढं पोगलपरिय, देसणं) ક્ષેત્રની અપેક્ષાએ દેશેન અપાઈ પુદ્ગલ પરિવર્તન સુધી. .. (सम्मामिच्छादिट्ठीणं पुच्छा) सभ्य टन विषयमा प्रश्न ? (गोयमा जहणे अंतोमुहुत) 3 गौतम InEन्य मन्तभुत (उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं) ७ पृष्ट सन्तति ' (वार