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प्रमेयवोधिनी टीका पद १८ सू० ११ दर्शनद्वारनिरूपणम्
| বহালদ্ভাবকত্সৱা मूलम्-चक्खुदसणी णं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! जहणेणं अंतो मुहुत्तं, उकोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं, अचवखुदंसणी भंते ! अचखुदंसणी ति कालओ केयचिरं होइ ? गोयमा । अचखुदंसणी दुविहे पणत्ते, तं जहा-अणाईए वा अपजशासिय, अणाईए वा सपज वसिए, ओहिदसणी णं पुच्छा, गोयमा ! जहणेणं एगं समयं, उकोसेणं दो छावठीओ सागरोत्रमाणं साइरेगाओ, केवलदसणी णं पुच्छा, गोयमा ! साईए अपज्जवसिए ॥सू० ११॥ ___छाया-चक्षु दर्शनी खलु भदन्त ! पृच्छा, गौतम ! जयन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन सागरोपमसहस्रं सातिरेकम्, अवक्षुर्दशनी खलु भदन्त ! अचक्षुदर्शनी इति कालतः कियञ्चिर भवति ? गौतम ! अचक्षुर्दर्शनी द्विविधः प्रज्ञतः, तद्यथा-अनादिको वा अपर्यवसितः अनादिकोवा सपर्यवसिनः, अवधिदर्शनी खलु पृच्छा, गौतम ! जघन्गेन एक समयम्, उत्कृप्टेन
दर्शन द्वार शब्दार्थ-(चरखुदंसगीणं भंते ! पुच्छा ?) हे भगवन् ! चक्षुदर्शनी केविषयमें पृच्छा? (गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्त) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त (उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेग) उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार सागरोपम
(अचखुदंसणी णं भंते ! अचम्लुदंसणि त्ति कालओ केवच्चिरं होई ?) हे भगय ! अचक्षुदर्शनी अचक्षु दर्शनी के रूप में कितने काल तक रहता है ? (गोयमा ! अचरचुदंसणी दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! अचक्षुदर्शनी दो प्रकार का कहा है (तं जहा) बह इस प्रकार (अणाहए वा अपज्जवसिए, अगाईए या सपज्ज. वसिए) अनादि अनन्त और अनादि सान्त (ओहिंदसणी णं पुच्छा?) अवधिदर्शनी के विषय में पृच्छा ? (गोयमा!
દર્શનકાર Avati-(चक्खुदसणी णं भंते ! पुच्छा ?) मावन् ! यक्षुश नना विषयमा छ ? (गोवमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुन) र गीत ! ४-५ तभुत (उकोसेणं सागरोवमसहस्स सातिरेग) Save xis अधि४ ॥२ सा॥३।५म,
(अचम्खुदसणी णं भंते । अचम्खुदंसणित्ति कालभो केवच्चिरं होइ ?) 8 समपन् ! अन्यक्षुशनी २२ शनीना ३५i ai सुधी २९ छ १ (गोचमा ! अचक्खुदसणी दुविहे पणने) गौतम अयशनी में प्रश्न ४ा छ (तं जहा) ते मा ४२ (अणाइए वा अपज्जवसिए अणाईए वा सपज्जवसिए) सनामिन-1 मने मनाहिसान्त. .