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प्रबोधिनी टीका पद १८ सू० १४ भाषाद्वारनिरूपणम्
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अपर्याप्तः खलु पृच्छा, गौतम ! जघन्येन उत्कृष्टेन भन्तर्मुहूर्तम्, नो पर्याप्तको नो अपर्याप्तकः खलु पृच्छा, गौतम ! सादि होडपर्यनतः, द्वारम् १७, सूक्ष्मः खलु भदन्त ! इति पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन असंख्येय पृथिवी कालः, बादरः खलु पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन असंख्येयं कालं
(पज्जतए णं पुच्छा ? पर्यास संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! जहणेणं अतोमुद्दत्तं) हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक (उक्कोसेर्ण सागरोवमस्यपुहतं साइरेगं ) reate कुछ अधिक सौ सागरोपम पृथक्त्व तक (अपज्जत्तए णं पुच्छा १) अप. यस संबंधी प्रश्न ! ( गोयमा ! जहणेणं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं) हे गौतम! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक
(नो पज्जत्तए नो अपज्जत्तए णं पुच्छा ?) नोपर्याप्त नोअपर्याप्त संबंधी प्रश्न ! (गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए) हे गौतम! सादि अपर्यवसित (द्वार १७)
(सुमे णं भंते! सुमित्ति पुच्छा ?) हे भगवन् ! सूक्ष्म जीव कितने काल तक सूक्ष्मपनेमें रहता है, ऐसा प्रश्न (गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त तक (उनको सेणं पुढविकालो) उत्कृष्ट पृथ्वी काल पर्यन्त
(बादरे णं पुच्छा ?) बादर जीव कितने काल तक बादरपनेमें रहता है, ऐसा प्रश्न (गोधमा ! जहणेणं अंतोमुहुतं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं) हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक, उत्कृष्ट असंख्यात काल तक (जाव खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जइ भाग) यावत् क्षेत्र से अंगुल के असंख्यातवे भाग
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(पज्जत्तए णं पुच्छा ?) पर्याप्त सम्बन्धी प्रश्न ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं) गौतम ! धन्य अन्तर्मुहूर्त सुधी मने (उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं साइरेगं ट કાંઇક અધિક સે સાગરાપમ પૃથકત્વ સુધી.
( अपज्जत्तएणं पुच्छा ?) अपर्याप्त संबंधी प्रश्न ? (गोयमा । जहणेणं उक्कोसेर्ण अंतोमुहुत्तं) हे गौतम! धन्य भने अष्ट अन्तर्मुहूर्त सुधी.
(नो पज्जत्तर नो अपज्जत्तएणं पुच्छा ?) नापर्याप्त नाअपर्याप्त समन्धी प्रश्न १ (गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए) हे गौतम ! साही अपर्यवसित. (द्वार १७)
(सुहुमेणं भंते | सुहुमेत्ति पुच्छा ?) हे भगवन् ! सूक्ष्म व उसा आज सुधी सूक्ष्म पशुभां रहे छे. येवे। प्रश्न ? (गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं) हे गौतम | धन्य अन्तर्मुहूर्त सुधी (उक्कोसेणं पुढविकालो) उत्कृष्ट पृथ्वीभास सुधी.
(बादरेणं पुच्छा ?) बाहर लव टसा समय सुधी माहरा रहे है. सेवा प्रश्न ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं) हे गौतम! धन्य अन्तर्मुद्धित सुधी, उत्कृष्ट असभ्याता सुधी (जाव खेचओ अंगुलस्स असंखेज्जइ भाग) यावत् क्षेत्री અગુલના અસંખ્યાતમા ભગ