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प्रापमा अपि एचञ्चैत्र, नवरं जघन्येन एक समपम्, मनापर्यवज्ञानी खलु भदन्न ! मनापर्यत्रज्ञानी इति कालतः फियञ्चिरं भवति ? गौतम ! जघन्येन एक समयम्, उत्कृष्टेन देशोना पूर्वको सि, केवलज्ञानी खलु भदन्त ! पृच्छा, गौतम ! सादिकोऽपर्यवसितः, अज्ञानी मत्यज्ञानी श्रुता ज्ञानी पृच्छा, गौतम ! अज्ञानी मत्यज्ञानो ताज्ञानी त्रिविधः प्रजप्तः, तपा-अनादिको वा अपर्यवसितः अन दिको वा सपर्य'सतः, सादिको वा सपर्यःसितः, तत्र खलु योऽसौ सादि
(अभिणियोहियनाणी णं पुच्छा ?) अभिनियोधिक ज्ञानी के विषयमें पृच्छा ? (गोयम ! एवं चेच) हे गौतम ! इसी प्रकार (एवं सुयणाणी घि) इसी प्रकार श्रुत. ज्ञानी भी (ओहिनाणी वी एवं चेव) अवधिज्ञानी भी इसी प्रकार (नवरं) विशेष (जहण्णेणं एगं समयं) जघन्य एक समय तक __(मणपज्जवनाणी णं भंते ! मणपज्जयनागि त्ति कालओ फेपच्चिर होइ?) हे भगवन् ! मनापर्यवज्ञानी किनने काल तक मन:पर्यवज्ञानी पनेमें रहता है ? (गोयमा ! जहण्णणं एग सल्या हे गौतम ! जयन्ध एक समय (उको सेणं देखणा पुवाकोडी) उत्कृष्ट देशोन करोड पूर्व __(केवलणाणी णं पुच्छा ?) केवलज्ञानी-पृच्छा? (गोयना ! साहए आज्जवसिए) गौतम ! मादि अनन्त (अण्णाणी, मइअण्णाणी सुय अण्णाणी पुच्छा ?)अज्ञानी मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी संबंधी पृच्छा ? (गोयमा !) हे गौतन ! (अण्णाणी, मह अण्णाणी सुय अगाणी) अज्ञानी, मत्यज्ञानी और ताज्ञानी (तिथिहे पण्णत्ते तीन प्रकार का कहा है ( जहा-अगाइए वा अपज्जवभिए, अणादीए वा रूपज्ज धसिए) वह इस प्रकार-अनादि अनन्त और अनादि सान्त (सादीए वा सपज
(आभिणियोमियनाणी पुच्छा ?) मलनिमाविज्ञानाना २४। १ (गोयमा ! एवं चेव) गौतम । १ . (एवं सुयणःणी) 2 अरे श्रुतज्ञाती ५५ (ओहिनाणी वि एवं चेव) अनधिज्ञानी पर मेरी रे (नवरं) विशेष (जहष्णेणं एगं समय) अन्य એક સમય સુધી.
(मणपज्जवनणी णं भंते । मगपज्जवनःणित्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?) भाव। मनः५ वजनी 32 सुधी मन पवज्ञानी २९१ (गोयमा ! जहण्णेणं एग समय) है गौतम! 1-1 से समय (उक्कोसेणं देसूणा पुष्पकोडी) 6ष्ट शान ४२७ प्व
(केवल गाणीण पुच्छा?) जानी विधे २ ? (गोयमा ! साइए अपज्जवसिए। ગીત ' સાદિઅનન્ત
(अण्णाणी, मइअण्णाणी सयअण्णाणी पुच्छा ) मनी, भत्यज्ञाना, अ. समयी १२01 ? (गोयमा गौतम । (अण्णाणी. मइअग्णाणी, सुयअण्णाणी) भत्यज्ञानी मने श्रु॥ज्ञानी (तिविहे पण्णत्ते) १५ प्रारना ४ा छ (तं जहा-अणाइए का अपज्जवसिर, अणादीए वा सपज्जवसिए) ते मारे-मनाहिमनन्त मन मनासान्त