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प्रमेययोधिनी टीका पद १८ सू०. १ जीवादिकायस्थितिनिरूपणम् जघन्येन दशवर्षसहस्राणि उत्कृष्टेन त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमानि, तिर्यग्यानिकः खलु भदन्त ! तिर्यग्योनिक इति कालतः क्रियचिरं भवति ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम, उत्कृष्टेन अनन्तं कालम्, अनन्ता उत्सपिण्यापिण्यः कालतः, क्षेत्रतः, अनन्ता लोकाः असंख्येय पुद्गलपरिवर्ताः, ते खलु पुद्गलपरिवर्ताः आवलिकाया असंख्येयभागः, तिर्यग्योनिकी खलु भदन्त ! तिर्यग्योनिकीति कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! जघन्येन अन्तमुहर्तम्, उत्कृ. . प्टेन त्रीणि पल्योपमानि पूर्वकोटि पृथक्त्वाभ्यधिकानि, एवं मनुष्योऽपि मनुष्यपि एवञ्चव, देवः खलु भदन्त ! देव इति कालतः किचिरं भवति ? गौतम ! यथैव नैरयिकः, देवी खलु हे भगवन् ! तिर्यग्योनिक कितने काल तक तिर्यग्योनिकपने में रहता है ? (गोयमा! जहणेणं अंतोमुहत्तं उघोसेणं अणतं कालं) हे गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त तक उत्कृष्ट अनन्त काल तक (अगंताओ उस्सप्पिणीओ सप्पिणीओ कालओ) काल से अनन्त उत्सर्पिणियां, अवसर्पिणियां (खेत्तओ अणंता लोगा) क्षेत्र से अनन्त लोक (असंखेज पोग्गलपरियहा) असंख्यात पुद्गलपरावर्तन (ते णं पुग्गलपरियहा) वे पुदगलपरावर्तन (आवलियाए असंखेजइभागे) आवलिका के असंख्यात वें भाग (तिरिक्खजोणिणी णं भंते ! तिरिक्खजोणिणि त्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?) हे भगवन् ! तिथंचनी कितने काल तक तिर्यचनी रहती है ? (गोयमा! जहण्णेणं अंतोनहत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई) हे गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहत, उत्कृष्ट से तीन पल्योपम तक (पुन्चकोडिपुत्तमभहियाई) पूर्वकोटि पृथक्त्व करोड पूर्व अधिक __(एवं मणुस्से वि) इसी प्रकार मनुष्य भी (मणुस्सी वि एवं चेव) मनुष्यनी भी इसी प्रकार (देवेणं भंते ! देवत्ति कालओ केवञ्चिरं होइ?) हे भगवन् ! देव कितने काल तक देव रहता है ? (गोयमा ! जहेव नेरइए) हे गौतम ! जैसे नारक (देवी णं ति यानि सुधा तियान, २९ छ १ (गोयमा । जहणेणं अंतोमहत उकोसेणं अणंत काल) मौतम ! धन्य मन्तभुत सुधी, पटन-तह अधी (अणंताओ उस्सप्पिणी ओसप्पिणीओ कालओ) ४णया मनन्त Gralayमसपियो (खत्तओ अता लोगा) थी मनन्त (अस खेज्ज पोग्गलपरियट्टा) मस ज्यात पुन ५२ (तेणं पुग्गलपरियट्टा) ते ५हत परावत (आवलियाए अस खेज्जइ भागे) मानिडाना असन्यातमा माय (तिरिक्खजोणिणीणं भंते तिरिक्खजोणिणित्ति कालओ फेवञ्चिर होइ) सावन् ! तियनी ३८सा ४ सुधा तिय यनी २९ छ १ (गोयमा। जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई) 3 गौतम ! धन्य सन्त उष्टय पक्ष्यापम सुश्री (पुत्रकोडि पुहुत्तमन्भहियाई) पूटि पृथप ४३७ पूर्व मधि ""(एवं मणुस्से वि) से प्रा२ मनुष्य पर (मणुस्सी वि एवं चेत्र) भनुयिनी पय से प्रारे. (देवेणं भंते देवत्ति कालओ केवच्चिर होइ ? हे भगवन् । वटा सुधी हवाणामा २७ छ ? (गोयमा ! जद्देव नेरइए) ३ गौतम ! 74 ना२४ (देवीणं भंते ! देवित्ति कालओ