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प्रमैयबोधिनी टीका पद १७ सू.० १६ लेश्यापरिणमनिरूपणम्
टीका-अथ सर्वप्रथमं परिणामलक्षणयभिधातु यास गरिणामोऽभिधित्सित स्ता एव लेश्याः प्ररूपयति-'कइणं भंते ! लेस्साओ पणत्ताओं' हे भदन्त ! कति खलु लेश्याः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'छरलेस्सागो पण्णत्तामो' पडूलेश्याः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहाकण्हलेस्सा जाव सुकलेस्सा' तद्यथा-कृष्णलेश्या यावल नीललेश्या कापोतलेश्या तेजोलेश्या पद्मलेश्या शुक्ललेश्या अत्रेदं वोध्यम् लेश्यायाः पूर्व मुक्तत्वेऽपि परिणामाद्यर्थ प्ररूपणार्थ पुनरुपन्यास इति गौतमः पृच्छति-से नूणं अंते ! हलेस्से नीललेस्सं पप्प ता रूवत्ताए ता वण्णत्ताए ता गंवत्ताए ता रसताए ता फासत्ताए शुज्जो सुज्जो परिणमइ ?? हे भदन्त ! ___ (से नृणं भंते ! सुकलेस्सा) क्या भगवन् ! शुक्ललेश्या (किण्हलेस्सं नीललेस्सं काउलेस्सं तेउलेस्सं पम्हलेस्सं पच्प) कृष्ण, नील, कापोत, तेजो या पद्मलेश्या को प्राप्त होकर (जाब सुज्जो २ परिणमइ ?) यावत् बार-बार परिणत होती है ? (हंता गोयला ! तं चेच) हां गौतम ! वही वक्तब्धता सू० १६॥. ___टीकार्थ-अब सर्वप्रथम परिणाम अर्थात परिणलन (परिवर्तन) का निरूपण किया जाता है, किन्तु जिनके परिणाम का निरूपण गरता है, पहले उन लेश्या
ओं का कथन करते हैं___ गौतमस्वामी-हे भगवन् ! लेश्याएं कितनी गही गई है ?
भगवान्-हे गौनस ! लेश्याएं छह प्रकार की कही गई है, वे इस प्रकार-कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेल्या, तेजोलेश्या, एड्मलेश्या और शुक्ललेश्या ।
यद्यपि लेश्याओं का निर्देश पहले किया जा चुका है, तथापि परिणाम आदि की प्ररूपणा करने के लिए फिर ले उनका निर्देश किया गया है। ___ गौतमस्वामी-हे भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या, नीललेश्या को प्राप्त होकर अर्थात् परस्पर अवयवों के स्पर्धा को पाकर नीललेश्या के स्वरूप में पुनः पुनः
(से नूगं भंते । सुकलेस्सा) शु गवन् ! शुरलेश्या (किण्हलेस्सनीललेस्स काउलेस्स तेउलेस्स पम्हलेस्स पप्प) ४०, नास, पोत, ते २०१२ पभोश्याने प्राप्त यन (जाव भुज्जो मुज्जो परिणमइ) यावत् पारवा२ पा२त थाय छ ? (हंता गोयमा ! तंत्र ह, गोतम ! तश्वतव्यता. ॥ सू० १६॥
ટકાથ– હવે સર્વ પ્રથમ પરિણામ અર્થાત્ પરિણમન (પરિવર્તન)નું નિરૂપણ કરાય છે, પણ જેના પરિણામનું નિરૂપણ કરવુ છે, પહેલા તે લેશ્યાઓનું કથન કરે છે–
શ્રી ગૌતમસ્વામી - હે ભગવન્! લેશ્યાઓ કેટલી કહેલી છે?
શ્રી ભગવાન-હે ગૌતમ ! છ કહેલી છે, તે આ પ્રકારે-કૃષ્ણલેશ્યા, નલલેશ્યા, કાપત. લેશ્યા. તેજલેશ્યા, પદુમલેશ્યા અને શુકલેશ્યા યદ્યપિ લેશ્યાઓનો નિર્દેશ પહેલા કરાઈ ગયેલ છે, છતાં પણ પરિણામ આદિની પ્રરૂપણ કરવા માટે ફરીથી તેમને નિર્દેશ કરેલો છે.
શ્રી ગૌતમસ્વામી–હે ભગવન્ ! શું કૃષ્ણલેશ્યા, નીલેશ્યાને પ્રાપ્ત થઈને અર્થાત