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प्रपोधिनी टीका पद १७ ९० १९ लेश्यागन्धनिरूपणम् तिस्रः प्रशस्ताः, तिस्रः संकक्लिष्टाः, तिस्रो ऽसंकक्लिष्टाः, तिस्रः शीतक्षाः, तिस्रः स्निग्धोष्णाः, तिस्रोदुर्गतिगामिकाः, तिस्रः सुगतिगामिकाः । सू० १९॥ ' टोका-इतः पूर्वं कृष्णादिलेश्या द्रव्याणां रसः प्ररूपितः, सम्प्रति तेषामेव गन्धं प्ररूपयितुमाह-'कइ णं भंते ! लेस्लाओ दुब्भिगंधामो पण्णचाओ ?' हे भदन्त ! कति खलु लेश्या दुरभिगन्धाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'गोयमा!' हे गौतम ! 'तो लेस्साओ दुब्भिगंधाभो पण्णत्ताओ?' तिस्रो लेश्या दुरभिगन्धा:-दुरभिर्गन्धो यासां ता दुरभिगन्धाः प्रज्ञप्ताः. 'तं जहा-कण्हलेसमा, नीललेस्सा, काउलेस्सा' तद्यथा-कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, एतासां कृष्णनीलपोतलेश्यानां मृतमहिपादि कलेवरेभ्योऽपि अनन्तगुणदुरभिगन्धयुक्तत्वात्, गौतमः पृच्छति-'कइणं भंते ! लेस्साओ सुभिगंधाओ पण्णत्ताओ ?' हे भदन्त ! कति खल्लु ले श्याः सुरभिगन्धा प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'तो लेस्साओ मुभिगंधाओ' पण्णत्ताओ' तिस्रो लेश्याः सुरभिगन्धाः-सुरभिर्गन्धो यास असंक्लिष्ट हैं (तओ सीतलुक्खाओ, तो निधुण्हाओ) तीन शीत-रूक्ष हैं, तीन स्निग्ध उष्ण हैं (तओ दुग्गतिगामियाओ, तओ सुगतिगामियाओ) तीन दुर्गति में ले जाने वाली, तीन सुगति में ले जाने वाली हैं
टीकार्थ-इससे पूर्व कृष्ण आदि लेश्याओं के रस का निरूपण किया गया है, अब उनके गंध की मरूपणा करते हैं
गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! कितनी लेश्याएं दुर्गन्ध वाली कही गई हैं ?
भगवान-हे गौतम ! तीन लेश्याएं दुर्गन्ध वाली कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं-कृष्णलेल्या, नीललेश्या कापोतलेश्या क्योंकि ये कृष्ण, और कापोतलेश्याएं मृतक महिष आदि के कलेचरों से भी-अनन्तगुणा दुर्गन्ध वाली हैं। ___ गौतमस्वामी-हे भगवन् ! कितनी लेश्याएं सुगंध वाली हैं ?
संकिलिट्राओ, तओ असंकिलिंदाओ) र ससिट छ, त्र मसिट छ (तओ सीत. 'लुक्खाओ, तओ निग्गुण्हाओ) र शीत-३६ छ, अनि GY छ (तओ दुग्गतिगामि'याओ, तओ 'सुगतिगामियाओ) प हुतिमi as नारी, अय सुगतिमा स नारी .
, ટીકાઈ—આનાથી પૂર્વ કૃષ્ણ આદિ લેશ્યાઓના રસનું નિરૂપણ કરાયેલું છે હવે તેને ગંધની પ્રરૂપણ કરે છે–
શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે-હે ભગવન્! કેટલી લેશ્યાઓ દુર્ગધવાળી કહેલી છે?
શ્રી ભગવાન –હે ગૌતમ! ત્રણ લેગ્યાઓ દુર્ગધવાળી કહેલી છે–તે આ પ્રકારે છેકૃષ્ણલેશ્યા, નીલેશ્યા, કાપતલેશ્યા, કેમકે આ કૃષ્ણ નીલ અને કાપતલેશ્યાઓ મૃતક • મહિષ આદિના કલેવરેથી પણ અનન્તગણ દુર્ગન્ધવાળી છે.
શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્! કેટલી લેશ્યાઓ સુગન્ધવાળી કહી છે? " ,