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हमने लेश्या कोश एक पठनीय और मननीय कोश बनाने की भरपूर चेष्टा की है ।
जब ऋषभदेव के द्वारा पुत्रों को बटवारा किया गया उस समय नमि-विनभि दो पुत्र नहीं थे । उनके दीक्षित होने के बाद वे पीछे पड़ गये । तपश्या की । धरणेन्द्र का आवागमन हुआ । उसने भगवान की जीभ में प्रवेश कर बोला कि तुम दोनों को बताढ्य पर्यंत की उत्तर-दक्षिण दिशा का राज्य सौंपता हूँ । वास्तव में समझे कि ऋषभदेव का आदेश हो गया । वे जाकर बस गये ।
वे
रोग की उत्पत्ति के नौ कारण है, यथा - आराम तलब ( २ ) अहितकर आसन पर बैठना (३) निद्रा (४) अति जागरण ( ५ ) मूत्र के वेग को रोकना (६) उच्चार ( प्रश्रवण ) को रोकना (७) पंथगमन (८) भोजन की प्रतिकूलता ( 1 ) अति भोग विलास करना ।
मूत्र के वेग को रोकने से आँख की रोसती कमजोर पड़ती है । बाधा को रोकने से मृत्यु को बुलावा देना है ।
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भय कोई मूल समस्या नहीं है राग द्व ेष, मूल समस्या है क्रोध, मान, शोक, जुगुप्सा ये मूल समस्यायें नहीं है समस्याएं है, दूसरे के सहारे पनपने वाली उपजीवी समस्या है भय ।
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मूल समस्या है माया और लोभ
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मल की
कषाय, मूल समस्या है
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ये नौ कषाय है, समस्याएं है ।
भय, रति, अरति, कषाय की उपजीवी राग और लोभ की
प्रमाद और साधना में जन्मजात वैर है । नेवला और सांप जन्मजात वैरी है । नेवला सतत जागरूक रहता है और उसी जागरूकता के कारण विजयी बनता है । सांप बार-बार डंक मारता है और नेवला हर बार जंगल में जाता है, जड़ी का सेवन कर विष को दूर कर पुनः तरोताजा होकर लौट आता है । आखिर सांप लड़ते-लड़ते थक कर परास्त हो जाता है । नेवला विजयी बन जाता है । अतः जीवन के लिए भी ज्ञान और आचार दोनों का योग जरुरी है ।
केवली समुद्घात के आठों समय में केवल काय योग होता है परन्तु लेश्या एक शुक्ल होती है । मन व वचन योग के अभाव में भी शुक्ल लेश्या हो सकती जीव परिणाम के दस भेदों में एक भेद हैं — लेश्या परिणाम |
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