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लेश्या-कोश गनक-२ पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि से जघन्य स्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं (पज्जत्ता असन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए जहन्नकालहिईएसु रयणप्पभापुढविनेरइसु उववज्जित्तए x x x ते णं भंते ! xxx एवं सच्चेव वत्तव्वया निरवसेसा भाणियव्वा ) उनमें कृष्ण, नील तथा कापोत तीन लेश्या होती है।
-भग० श २४ । उ १ । सू २८, २६ । पृ० ८१६ गमक-३ पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि से उत्कृष्टस्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( पज्जत्ताअसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए उक्कोसकालटिईएसु रयणप्पभापुढ विनेरइएसु उववजित्तए x x x ते णं भंते ! जीवा० अवसेसं तं चेव, जाव-अनुबंधो) उन में कृष्ण, नील तथा कापोत तीन लेश्या होती है।
--भग० श २४ । उ १ । सू ३१, ३२ । पृ० ८१६ गमक–४ जघन्यस्थितिवाले पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं (जहन्नकालट्टिईयपज्जत्ताअसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जित्तए x x x ते णं भंते ! सेसं तं चेव ) उनमें कृष्ण, नील तथा कापोत तीन लेश्या होती है।
-भग० श २४ । उ १ । सू ३४, ३५ । पृ० ८१७ गमक-५ जघन्यस्थितिवाले पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि से जघन्यस्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( जहन्नकाल हिईयपज्जत्त-असन्नि-पंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए जहन्नकालट्ठिईएसु रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जित्तए xxx ते णं भंते ! जीवा० सेसं तं चेव ) उनमें कृष्ण, नील तथा कापोत तीन लेश्या होती है।
--भग० श २४ । उ १ । सू ३७, ३८ । पृ० ८१७
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