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लेश्या - कोश
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योग कोश में योग के भेद - उपभेदों का बड़े ही तलस्पर्शी ढंग से विवेचन किया गया है । पठनीय है, चिन्तनीय है ।
- मुनिथी सुमतिचंदजी
प्रस्तुत पुस्तक स्व० मोहनलालजी बांठिया द्वारा प्रारम्भित जिनागम समुद्र अवगाहन कर विभिन्न जीवन आदि विषयों की शृंखला का दशमलव बर्गीकरण छट्टा पुष्प-ग्रन्थ रत्न है। शोध छात्रों व वाङ्गमय रसिकों के डिए बड़ा उपयोगी है । ऐसे ग्रन्थों का अध्ययन अध्येता के बहुश्रुतत्व में वृद्धि करता है । फिर भी संशोधनादि में पर्याप्त सतर्कता आवश्यक है । इसका प्रकाशन कर उच्चस्तरीय जैन साहित्य में अवश्य ही विद्वान सम्पादक ने बड़ा उपकार किया है । सहायक ग्रन्थ सूची में अधिकांश लाडण में प्रकाशित ग्रन्थ है जबकि कई दिगम्बर व जैनेतर ग्रन्थों का भी उपयोग किया है पर जैन साहित्य अति विशाल है । जितना इस प्रथम खण्ड में आया है, अवशिष्ट द्वितीय खण्ड में स्वाध्याय में रुचि वालों के लिए यह सन्दर्भ ग्रन्थ अवश्य
शोध और
।
अपेक्षित है पठनीय है ।
- भंवरलाल नाहटा
आज से अड़तीस वर्ष पूर्व आचार्य श्री तुलसी ने आगम सम्पादन के कार्य करने की घोषणा की थी । सम्पादन का एक अंग कोश है । तत्वज्ञ श्रावक श्री मोहनलालजी बांठिया ने इस कार्य को अपने ढंग से कोश का निर्माण दृढ़ व स्थिर अध्यवसाय से ही होता है । उन्हें सहयोगी मिले श्रीचन्द चोरड़िया ( न्यायतीर्थ ) । याजी इस कार्य को करते रहे ।
करना शुरु किया । वे मनोयोग से लगे । अस्वस्थ रहते हुये भी
पूरा करने में लगे हुये हैं
उनके देहान्त होने के बाद उनके अधूरे कार्य को श्री श्रीचन्द चोरड़िया । सीमित साधन सामग्री में वे जो कुछ कर पा रहे हैं, वह उनके दृढ़ संकल्प का ही परिणाम है । क्रिया कोश, लेश्या कोश, मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास, वर्धमान जीवन कोश के बाद अब योग कोश को सम्पन्न किया है । स्तुत्य है । आगमों के इन अन्वेषणीय विषयों पर कोई भी चले अनुमोदनीय है, अनुकरणीय है ।
फिर भी जैन दर्शन समिति का यह प्रकाशन विशेष संग्रहणीय बन पड़ा है । श्रम का उपयोग कितना होता है - यह तो शोधकर्त्ताओं पर निर्भर करता है ।
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