Book Title: Leshya kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 731
________________ लेश्या-कोश ५६१ ग्रन्थ मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास की आलोचनात्मक समीक्षा सम्यग् दर्शन पत्रिका में क्रमशः प्रकाशित हो रही है। इससे बोध होता है कि ग्रन्थ चेतना उत्पन्न करने वाला है। -मानिकचन्द सेठिया सुजानगढ़ १७ अगस्त १९७८ प्रस्तुत पुस्तक सम्यग् प्रकार से लिखी गयी है। -आचार्य तुलसी २० नवम्बर १९७७ पुद्गल कोश पर समीक्षा पुद्गल जैन आगम साहित्य का बहुत बड़ा विषय है। परमाणु और स्कन्ध इन दोनों पर शत-शत दृष्टियों से विचार किया गया है । उसका कोश जैन दर्शन के अध्येता के लिए बहुत उपयोगी होगा। तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन करने वालों के लिए अमूल्य निधि के रूप में उपयोगनीय होगा। इसमें श्वेताम्बरदिगम्बर दोनों परम्पराओं के ग्रन्थों का सार संकलित है। उपयोगिता और अधिक बढ़ गई है। वस्तुतः यह पुस्तक बहुत सुन्दर हुई है। -आचार्य महाप्रज्ञ सद्यः प्रकाशित 'पुद्गल कोश ( प्रथम खण्ड ) भेजा । तदर्थ अनेक धन्यवाद । अवलोकन का विषय-सामग्री के प्रतिपादन की सूक्ष्मता को देख अत्यन्त हर्ष हुआ। साधुवाद । सद्यः प्रकाशित 'पुद्गल कोश' ( प्रथम खण्ड ) श्री श्रीचन्द चोरडिया न्यायतीर्थ द्वय' द्वारा सम्पादित है। जिसका महत्व अन्य प्रकाशित कोशों की तरह वर्तमान काल में ही नहीं, पर जब तक अनुसं धित्सुओं का युग रहेगा तब तक रहने वाला है। ये अमर कृतियां है, विश्व कोश है। सद्यः प्रकाशित पुद्गल कोश (प्रथम खण्ड ) अजीवं द्रव्य में समाहित पुद्गल द्रव्य पर विभिन्न दृष्टिकोणों से विशद प्रकाश डालता है। प्रकाशित होने वाला दूसरा खण्ड उक्त प्रतिवादन को और बढ़ाने वाला होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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