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लेश्या-कोश
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का भविष्य के लिए स्थगित कर रखा था। मोहनलालजी बांठिया ने विषयीकरण का कार्य अपने हाथ में लिया। पूरी योजना बनाई। कार्य शुरू किया। उनके कार्य को हमने देखा और आगम सम्पादन के पूरक कार्य के रूप में उसे स्वीकार किया। मोहनलालजी विद्वान्, अध्ययनशील और धर्मनिष्ठ श्रावक थे। उन्हे श्रीचन्द चोरडिया का योग मिला। इस योग ने उनके कार्य को गतिशील बना दिया। योजना बहुत विशाल है, गति मंथर है। कितने दशक और लगेंगे कहा नहीं जा सकता फिर भी जैन दर्शन समिति में इस कार्य के लिए उत्साह है, यह प्रसन्नता की बात है।
-आचार्य तुलसी जैन विश्वभारती, लाडनू
१ जनवरी, १९६४ आचार्य श्री तुलसी की सन्निधि में आगम-सम्पादक की योजना बनी । उसमें अनेक कार्यों के साथ एक कार्य था आगमों का विषयीकरण। इस कार्य का दायित्व मोहनलालजी बांठिया ने सम्भाला। वे पूरी निष्ठा के साथ इस कार्य में जुट गये। श्रीचन्द चोरडिया का सहयोग उनके लिये मणि-कांचन जैसा हो गया। अन्य अनेक कार्यकर्ता इस प्रवृत्ति के सहयोगी बन गये ।
पुद्गल कोश से पूर्व वर्धमान कोश, लेश्या कोश, क्रिया कोश, योग कोश आदि अनेक कोश प्रकाश में आ चुके हैं। उनकी उपयोगिता भी सर्वत्र प्रमाणित हो चुकी है। पुद्गल जैन आगम साहित्य का बहुत बड़ा विषय हैं। परमाण और स्कंध इन दोनों पर शत-शत दृष्टियों से विचार किया गया है। उसका कोश जैन दर्शन के अध्येता के लिये बहुत उपयोगी होगा। तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन करने वालों के लिये एक अमूल्य निधि के रूप में उपयोगनीय होगा। इसमें श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों परम्पाराओं के ग्रन्थों का सार संकलित है। उपयोगिता और अधिक बढ़ गयी है। श्रीचन्दजी चोरडिया की संकलनात्मक और नियोजनात्मक मेघा उत्तरोत्तर बढ़ती रहे। इससे जैन दर्शन की बहुत प्रभावना होगी।
-आचार्य महाप्रज्ञ अध्यात्म साधना केन्द्र, संवत् २०५६
महरौली, नई दिल्ली-११००३० आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने कहा
स्व० मोहनलालजी बांठिया आगम के विशेषज्ञ थे। उन्होंने आगमों का गहरा अध्ययन किया। जब हमने आगम सम्पादन का कार्य शुरु किया तब उस
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