________________
५३४
लेश्या-कोश सम्पन्न हुआ है, वह अभिनन्दनीय है। इसका दूसरा खण्ड भी प्रकाशित हो रहा है।
__ इस संस्था से पहले 'लेश्या कोश' क्रिया कोश' भी प्रकाशित हो चुके हैं । यदि 'जैन पारिभाषिक शब्द कोश' भी प्रकाशित हो, तो अतीव उपयोगी होगा।
सम्यग् दर्शन-अगस्त १९८१
प्रस्तुत पुस्तक में इस अवसर्पिणी काल के चौबीसवें तीर्थकर भगवान महावीर के जीवन सम्बन्धी च्यवन से लेकर परिनिर्वाण तक का विवेचन दिया गया है। यह कहा जा सकता है कि विद्वान सम्पादकों ने जैन आगम तथा आगमेतर साहित्य का गहन अध्ययन कर भगवान महावीर के जीवन से सम्बन्धित यथाशक्ति सभी पाठों का संकलत कर इस पुस्तक में देने का प्रयत्न किया है। इस संकलन सम्पादन-कार्य में उन्होंने ८६ ग्रन्थों का उपयोग किया है जिनमें से ६५ ग्रन्थ श्वेताम्बर परम्परा के, १० ग्रन्थ दिगम्बर परम्परा के ७ ग्रन्थ बौद्ध परम्परा के तथा ७ ग्रन्थ ब्राह्मण परम्परा के होते हैं। इन ग्रन्थों की पूरी सूची भी पुस्तक में दी गई है। भगवान महावीर के जीवन के विषय में शोधपूर्ण चरित लिखने वालों के लिए निःसंदेह यह ग्रन्थ एक अच्छे मार्गदर्शन का काम करेगा।
ग्रन्थ के प्रारम्भ में युग प्रधान आचार्य श्री तुलसी के आशीवर्चन, प्रो० दलसुख मालवणिया के दो शब्द तथा डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन के अंग्नजी फोरवर्ड के होने से इसकी महत्ता का पाठक सहज ही अनुमान लगा सकते हैं ।
___ इस ग्रन्थ की सामग्री के संकलन-सम्पादन का महत्वपूर्ण कार्य स्व. श्री मोहनलाल बांठिया ने प्रारम्भ किया था, लेकिन कार्य पूर्ण होने से पूर्व ही उनका आकस्मिक स्वर्गवास हो गया। तब श्री श्रीचन्द चोरडिया ने अपनी सूझबूझ एवं श्रम निष्ठा से इस पवित्र कार्य को आगे बढ़ाया और उसी का यह परिणाम है कि आज यह कृति हमारे हाथों में है। इसके लिए श्री चोरडिया बधाई के पात्र हैं।
युवा दृष्टि-जनवरी १९८२
__ भारतवर्ष में अनेक परम्पराए उदित हुयी। पुष्पित, पल्लवित हुयी और समाप्त हो गयी। किसी भी देश की संस्कृति व परम्परा को कायम रखने के लिये उस देश व उस धर्म की परम्परा का साहित्य सुरक्षित रखना अनिवार्य होता है। जिसका साहित्य सुरक्षित हैं, वह परम्परा भी सुरक्षित है और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org