Book Title: Leshya kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 700
________________ ५३८ लेश्या-कोश संकलन किया गया है। इसके अतिरिक्त बौद्ध एवं वैदिक ग्रन्थों का भी आधार लिया गया है। यह सम्पादकद्वय की उदार एवं समन्वयवादी दृष्टि को उजागर करता है। प्रस्तुत ग्रन्थ विद्वानों के लिए, विशेष रूप से शोध-छात्रों के लिए विशेष उपयोगी है। इतना अवश्य है कि उद्धरणों में कालक्रम का ध्यान नहीं रखा गया । आगमों के पश्चात् नियुक्ति, भाष्य, चणि एवं संस्कृत टीकाओं के उद्धरण देने के पश्चात् आचार्यों के ग्रन्थ देने चाहिए थे और वे भी क्रमशः, जिससे काल की दृष्टि से यह स्पष्ट हो जाता है कि किस ग्रन्थ में भगवान महावीर के जीवन के सम्बन्ध में सर्वप्रथम लिखा गया है फिर भी सम्पादन सुन्दर है। सम्पादकद्वय का प्रयास स्तुत्य है। अमर भारती, जुलाई १९८१ . स्व० श्री मोहनलालजी बांठिया ने सार्वभौमिक दशमलव वर्गीकरण प्रणाली को साधकर, तदनुसार जैन सांस्कृतिक एवं सैद्धान्तिक कोशों का निर्माण प्रारम्भ किया और फलस्वरूप उनके क्रियाकोश और लेश्याकोश प्रकाश में आये। उसी शृङ्खला में प्रस्तुत 'वर्धमान जीवनकोश' है। कार्य अत्यन्त लगन एवं परिश्रम साध्य था। सौभाग्य से बांठियाजी को पं. श्रीचन्द चोरडिया के रूप में एक उपयुक्त सहयोगी प्राप्त हुआ और इन दोनों विद्वानों के संयुक्त अध्यवसाय का परिणाम जो तीनों कोश हैं-प्रस्तुत कोश पूरा होने के पूर्व ही बांठियाजी दिवंगत हो गये, किन्तु चोरड़ियाजी ने साहस पूर्वक कार्य पूरा कर ही दिया। __ भगवान महावीर के जीवन तथ्यों से सम्बद्ध इस महाकोश में ८६ ग्रन्थों का उपयोग किया गया है, जिनमें से १० दिगम्बर परम्परा के, ७ ब्राह्मण परम्परा के, ७ बौद्ध और शेष ६५ श्वेताम्बर परम्परा के हैं। स्वभावतः श्वेताम्बर साहित्य का प्रायः पूरा उपयोग हुआ है। यदि भगवान के जीवन से संबद्ध समस्त दिगम्बर साहित्य का भी सम्यग् उपयोग हो पाता तो कोश की उपयोगितायें और अधिक वृद्धि हो जाती। यों, विद्वान सम्पादकों ने यत्र तत्र उभय परम्पराओं के अन्तरों का भी संकेत कर दिया है। कोश अपने विषय में सर्वथा पूर्ण और निर्दोष है, यह शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी, तथापि इस विषय में संदेह नहीं है कि अपने विषय पर यह सर्वप्रथम एवं अति सफल प्रयास है। महावीर जीवन के अध्येताओं एवं शोध छात्रों के लिए यह महाकोश अति उपयोगी सिद्ध होगा। प्रारम्भ में आचार्य तुलसी गणि का आशीर्वचन, प्रकाशकीय, सम्पादक चोरड़ियाजी की प्रस्तावना, प्रो० दलसुख मालवणिया के दो शब्द और डा० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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