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लेश्या- कोश
कोश भी शीघ्र ही पाठकों के हाथों में पहुचेगी । और आलोच्य पुस्तक में आये कतिपय मुद्रण दोष उनमें नहीं रहेंगे । ऐसी रचनाओं के लिए जैन दर्शन समिति धन्यवादा है |
जैन वाङ्गमय के तलस्पर्शी अध्येता स्व० मोहनलाल बांठिया के अनवरत परिश्रम तथा निष्करुण साधना ने कलकत्ता जैसे सांस्कृतिक नगरी को जैन अध्ययन केन्द्र बना दिया । उनके निष्ठुर स्वर्गवास के उपरान्त श्री श्रीचन्द चोरड़िया सफलता के साथ उनकी वागडोर सम्हाली । सन १९६६ में प्रकाशित लेश्या कोश ने जैन दर्शन समिति को जन्म दिया सन् १६६९ में और तुरन्त बाद क्रिया कोश' और मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास जसे उपयोगी अनेक ग्रन्थों का प्रकाशन प्रारम्भ हो गया । यह प्रकाश जैन विषय कोश योजना के अन्तर्गत हुआ ।
— वीर-वाणी, जयपुर ३ सितम्बर १६८१
प्रस्तुत समीक्ष्य ग्रन्थ 'वर्धमान जीवन कोश' भी इसी योजना के साथ जुड़ा हुआ है | सम्पादकद्वय ने इस ग्रन्थ की सामग्री साम्प्रदायिकता के दायरे से हटकर उपलब्ध समस्त वाङ्गमय से एकत्रित की है । उन्होंने उसे दो खण्डों में विभाजित किया है । प्रस्तुत प्रकाशित प्रथम खण्ड में तीर्थङ्कर महावीर के जीवन विषयक च्यवन से परिनिर्वाण तक का विषय संयोजित हुआ है ।
सामग्री की प्रस्तुति में सम्पादन कला का निर्दोष उपयोग हुआ है । विषयोप विषयों के सुन्दर वर्गीकरण तथा उनके अनुवाद अथवा सारांश ने पुस्तक की उपयोगिता को एक नई चिन्तन-धारा के साथ प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न किया है । प्रस्तुति के क्रम में यदि कालक्रम का ध्यान रखा गया होता तो निश्चित ही और भी वैज्ञानिकता जुड़ जाती ।
कुल मिलाकर यह ग्रन्थ शोधकों तथा पाठकों को इतनी साधार सामग्री प्रस्तुत करता है कि परम्परित मान्यताओं पर जब कई नये प्रश्न उभारने लगते हैं । समकालीन स्थिति बोध की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ संग्रहणीय है | सम्पादक और प्रकाशक एतदर्थ अभिनंदनीय हैं । पाठ्य बड़ी उत्सुकता के लिए अग्रिम प्रकाशनों पर नजर बांधे हुए हैं । मूल्य आकार-प्रकार को देखकर कम ही लगता है ।
सुधर्मा, अप्रैल १९८३
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