Book Title: Leshya kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 703
________________ ५४१ लेश्या-कोश इस ग्रन्थ में वर्धमान महावीर के जीवन आधार की समस्त सामग्नी संकलित कर दी गई है। यह सामग्नी दशमलव प्रणाली से महावीर के नाम विवेचन, च्ययन से जन्म, गृहकाल, साधना-काल, केवली काल, परिनिर्वाण, वर्धमान सम्बन्धी फूटकर पाठ और विविध इस क्रम से संयोजित की गई है कि वर्धमान महावीर के जीवन की आधारभूत सामग्नी का यह प्रामाणिक सन्दर्भ ग्रन्थ शोधार्थियों के लिए अत्यन्त ही उपयोगी और पथ-प्रदर्शक है। ____ इसके पूर्व लेश्या कोश तथा क्रिया कोश जैन दर्शन समिति ने प्रकाशित किये हैं जिनका साहित्य जगत में काफी आदर हुआ है। ऐसी रचनाओं के लिए जैन दर्शन समिति धन्यवाद की पात्र है। इस कोश की यह भी विशेषता है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर की कुछ मान्यताओं को अलग-अलग तालिका बनाकर दिखाया गया है। सम्पादकों का यह श्रम अभिनन्दनीय है। -जैन टाइम्स ११ जनवरी १९८२ भगवान महावीर के च्यवन से परिनिर्वाण तक का विस्तार पूर्वक विवेचन इस कोश में किया गया है। दिगम्बर-श्वेताम्बर एवं जनेतर सामग्री का यथा स्थान संकलन कर इतिहास प्रेमियों एवं शोध-छात्रों के लिये इसे एक सन्दर्भ ग्रन्थ बना दिया है। इस प्रथम खण्ड में मूल नो विभाग हैं-१ च्यवन से जन्म, २ जन्म से गृहस्थ काल, ३-४ साधना काल, ५-६ तीर्थङ्कर काल, केवल ज्ञान, ७ परिनिर्वाण, ८ फुटकर पाठ, ( वर्धमान सम्बन्धी ), ६ विविध विषय-वर्धमान सम्बन्धी। महावीर जीवन सम्बन्धी सारी सामग्नी इन नो विभागों में संकलित है। किसी भी महापुरुष का जीवनवृत्त मौलिकता पूर्ण लिख देना, कलम के धनी का काम है। वह अधिक श्रम साध्य नहीं होता जितना कोश रचना जिसके लिये, अनेक ग्रन्थों की खोज, ज्ञान एवं अध्ययन अपेक्षणीय है। यह कार्य स्व. बांठियाजी ही कर सके हैं। संस्कृत पाठों का हिन्दी अनुवाद देकर कोश के पाठकों और अध्ययन कर्ताओं के लिए इसे और सरल कर दिया है। इसके पूर्व लेश्या कोश तथा क्रिया कोश, जैन दर्शन समिति ने प्रकाशित किये हैं जिनका साहित्य जगत में काफी आदर हुआ है। स्व. बांठियाजी द्वारा अथक परिश्रम पूर्वक तैयार की गई तीनों अमर कृतियों के लिए उनका तथा उनके सहयोगी श्री चरोड़ियाजी का साहित्य जगत् सदा आभारी रहेगा। आशा है स्व. बांठियाजी की अवशिष्ट अमूल्य कृतियां पुद्गल कोश एवं ध्यान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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