Book Title: Leshya kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 721
________________ ५५९ लेश्या-कोश लेखक का अध्ययन और अध्यवसाय जितना प्रशस्त है, उतना ही उसका सम्पादन भी प्रशस्त होता तो ग्रन्थ की महत्ता और अधिक बढ़ जाती। सम्पादन सम्बन्धी परिमार्जन पर भविष्य में और अधिक अपेक्षाए की जा सकती हैं। कुल मिलाकर लेखक ने एक विमर्शनीय विषय को कोश के रूप में प्रस्तुत किया है। यह ग्रन्थ भी पूर्व प्रकाशित लेश्या कोश, क्रिया कोश आदि की कोटि का है। लेखक का परिश्रम और पुरुषार्थ भविष्य में भी इस प्रकार के अन्य विवेचनीय विषयों पर जिज्ञासु और अनुसन्धित्सुओं के लिए कुछ करे, यही काम्य है । -मुनि गुलाबचन्द्र "निर्मोही' जन भारती जन दर्शन के उदार दृस्टिकोण और क्रमिक आत्म विकास के सिद्धान्त के अनुसार जड़ चेतन के मिश्रित भाव से जब नन्थि भेद कर सम्यक्त्व प्राप्ति भेद विज्ञान की योग्यता प्राप्त करता है तभी उसका वास्तविक विकास होता है और वह प्राणी कर सकता है। शास्त्र प्रमाणों से परिपूर्ण इस ग्रन्थ में विद्वान लेखक ने नौ अध्यायों में प्रस्तुत विषय पर अच्छा प्रकाश डाला है। डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन जैसे विद्वान ने इसका आमुख लिखा है, ग्रन्थ संग्रहणीय है। कुशल निर्देश सितम्बर १६७८ प्रसिद्ध विद्वान श्री श्रीचन्दजी चोरड़िया ने समीक्ष्य-कृति को ६ अध्यायों में विभाजित किया है--(१) मिथ्यात्वी का स्वरूप, (२) मिथ्यात्वी का सद्असदनुष्ठान विशेष, (३) मिथ्यात्वी और करण, (४) मिथ्यात्वी के क्षयोपशम, निर्जरा विशेष, (५) मिथ्यात्वी के क्रिया-भाव विशेष, (६) मिथ्यात्वी का ज्ञानदर्शन विशेष, (७) मिथ्यात्वी के व्रत विशेष, (८) मिथ्यात्वी और आराधनाविराधना, तथा () मिथ्यात्वी का उपसंहार। इन अध्यायों में विद्वान लेखक ने यह स्पष्ट करने का साधार प्रयत्न किया है कि मिथ्यात्वी का कब और किस प्रकार विकास हो सकता है। सैद्धान्तिक ग्रन्थों से अनुवाद प्रमाण भी अपने कथन की सिद्धि में प्रस्तुत किये हैं। लेखक और प्रकाशक इतने सुन्दर ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए बधाई के पात्र हैं। जैन दर्शन समिति विभिन्न कोश तैयार करने के लिए प्रख्यात हो चुकी है। प्रस्तुत ग्रन्थ में ग्रन्थ सूची तथा शब्द सूची और दे दी जाती तो पुस्तक की उपयोगिता और अधिक हो जाती। ग्रन्थ का मूल्य निश्चित ही कम है। यह अनुकरणीय है। -डाँ० भागचन्द्र भास्कर सुधर्मा, फरवरी १९८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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