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लेश्या-कोश
५६५ मिथ्यात्वी की भली करने से कुछ नहीं होता इस भरम को आपकी यह किताब दूर कर सकती है इसलिये मैं आपको धन्यवाद देता हूँ।
-रामलाल पुगलिया
कलकत्ता 'मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास' पुस्तक एक अनुठी कृति है।
-मुनि महेन्द्रकुमार प्रथम न्यायतीर्थ श्रीचन्दजी चोरड़िया का ग्रन्थ 'मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास देखा। लेखक ने आगम साहित्य के महान् सागर में से विषय सम्बद्ध समस्त प्रकरणों को एकत्रित कर, एक महान कार्य कर दिया है। प्रस्तुत विषय पर छान-बीन व चिन्तन के लिए यह एक ही ग्रन्थ पक्ष-विपक्ष के समस्त प्रमाण सामने ला देता है। व्याख्या-ग्रन्थों का भी यथेष्ट उपयोग बिना किसी भेदरेखा के लेखक ने किया है। संक्षेप में इतना ही कहा जा सकता है कि 'मिथ्यात्वी के अध्यात्मिक विकास' विषय पर यह अपूर्व कोटि का ग्रन्थ बन गया है।
-मुनि नगराज
कलकत्ता
२७ फरवरी १९७८ । मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास नाम का पुस्तक मिला, देखा। पुस्तक में आलेखित पदार्थों के दर्शन से जैन दर्शन व जैनागमों की अजेनों की तरफ उदात्त भावना और आदरशीलता (प्रगट ) होती है एवं जैन धर्म को अप्राप्त आत्माओं में कितने प्रमाण में आध्यात्मिक विकास हो सकता है इत्यादिक विषयों का आलेखन बहत सुन्दरता से जैनागमों के सूत्रपाठों से दिखाया गया है। इसलिये विद्वान् श्रीचन्द चोरड़िया का प्रयास बहुत प्रशंसनीय है। और यह ग्रन्थ दर्शनीय है।
-लि० रामसूरि ( डेलावाला ) का धर्मलाभ
२३ नवम्बर १९७७ मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास, नामक पुस्तक शास्त्रोक्त आधार पर जो पुस्तक प्रकाशित की है, उसके लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
-प्रेमसिंह राठौड़ मानकचौक, रतलाम
२२ अप्रैल १९७८
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