Book Title: Leshya kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 699
________________ लेश्या-कोश ५३७ कोश रचना स्वयं में एक सुविकसित विज्ञान है और अत्यन्त श्रमसाध्य कार्य है। जिसे हम 'लोहे के चने चाबना' कहते हैं, ठीक वैसा ही मुश्किल काम है कोश बनाना । समीक्ष्य कृति जैनविद्या के क्षेत्र का एक अपरिहार्य, अपूर्व/बहुमूल्य संदर्भ ग्रन्थ है। जैन दर्शन समिति, कलकत्ता ने इससे पूर्व लेश्या-कोश' तथा 'क्रिया-कोश' जैसे बहुमूल्य कोश भी क्रमशः १९६६ और १९६६ में प्रकाशित किये हैं । आलोच्य कोश समिति का तीसरा प्रकाशन है । इस शृंखला में 'पुद्गल-कोश' और ध्यान-कोश' जल्दी ही जैन विश्व भारती, लाडनू द्वारा प्रकाश्य हैं । जो योजना इस ग्रन्थ में दी गयी है और जो वस्तुतः स्व. मोहनखाल बांठिया का एक सुखद स्वान यदि किसी तरह सम्पन्न होता है तो कहा जाएगा कि जैन विद्या के क्षेत्र में वह एक अविस्मरणीय प्रसंग होगा। स्व. बांठिया एक नामी गणितज्ञ थे, अतः उनकी यह योजना वास्तविक, व्यवस्थित, व्यावहारिक, और ठोस है। उनके साथी श्री चोरड़िया ने इसे अपने खून-पसीने से सींचा है, किन्तु उनके तन-मन की भी सीमा है। एक व्यक्ति पूरी लगन से खप कर और सर्वस्व होम कर जिस तरह संस्था की शक्ल ग्रहण करता है, श्री चोरड़िया ने यह कार्य उसी रौ में सम्पन्न किया है। लेश्या-क्रिया कोशों का जो स्वागत देश-विदेश में हुआ है वह उजागर है ; इसी तरह का मूत्यवान संदर्भ ग्रन्थ यह भी है। प्रस्तुत कोश में 'वर्धमान के च्यवन से परिनिर्वाण तक' के सारे प्रसंगों का विस्तृत विवेचन किया गया है। संक्षेप में कोश की तीन विशेषताएं हैं : १-इसमें बिना किसी पूर्वाग्रह के सभी आगम-आगमेतर, जैन-जनेतर स्रोतों से वर्धमान के जीवन तथ्यों को दोहित/आकलित सम्पादित किया गया है; २-सरल हिन्दी अनुवाद दिये गये हैं; ३-गहरी वस्तून्मुख दृष्टि से काम लिया गया है। दो कमियाँ भी रह गयी हैं : १-तथ्यों का संयोजन कालानुक्रम से नहीं है; २-छापे की कुछ भूलें रह गयी हैं। तथापि, कुल मिलाकर, कोश एक उल्लेखनीय उपलब्धि है और इसीलिए बधाई के योग्य है। आशा है द्वितीय खण्ड, जिसमें वर्धमान के पूर्वभव तथा उनसे सम्बन्धित घटनाएं होंगी, अधिक सशक्त/निर्दोष होगा। तीर्थकर-अगस्त १९८१ इन्दौर महाश्रमण भगवान महावीर पर अबतक अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है पर प्रस्तुत ग्रन्थ का अपना विशेष महत्व है। इसमें विभिन्न आगमों, नियुक्ति, चर्णि, भाष्य एवं टीका ग्रन्थों तथा आचार्यों द्वारा रचित ग्रन्थों में भगवान महावीर से सम्बन्धित सामग्री को संकलन किया गया है। श्वेताम्बर परम्परा द्वारा मान्य आगमों के साथ दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में से भी सामग्री का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740