Book Title: Leshya kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 694
________________ ५३२ लेश्या-कोश प्रस्तुत ग्रन्थ ( वर्धमान-कोश ) में विषय का वर्गीकरण, पाठों का संकलन और हिन्दी अनुवाद जिस श्रम और सजगता से हुआ है, निःसंदेह इस क्षेत्र के जिज्ञासु और शोधकर्ता व्यक्तियों के लिए इस ओर बढ़ना बहुत आसान हो गया है। अनुवाद की भाषा को सरल रखने का विशेष लक्ष्य रहा है। साथ ही यदि साहित्यिक स्तर, व्याकरण विधि और शुद्धा-शुद्धि की ओर कुछ विशेष लक्ष्य रहा होता तो यह सोने में सुगन्ध को चरितार्थ करने वाली बात होती। वर्धमान-कोश का द्वितीय और तृतीय खण्ड भी शीघ्र ही प्रकाश में आए तथा साथ ही स्व० बांठियाजी का आगम-कोश-परिकल्पना कार्य, जिसका कि एक बहुत बड़ा हिस्सा अभी फाइलों में ही आबद्ध है, को प्रकाश में लाया जाए। इस सभी साहित्यिक अपेक्षाओं के प्रति समाज का चिन्तक और सक्षम वर्ग विशेष ध्यान दे। जन दर्शन समिति और भाई श्री चोरड़ियाजी भी इस ओर विशेष सक्रिय होकर सामने आए-इसी आशा और कामना के साथ -बच्छराज संचेती सम्पादक-जैन भारती जून १६८२ प्रस्तुत कृति शास्त्रों के आधार पर रचित महावीर जीवन कोश है जिसमें भगवान महावीर के जीवनवृत्त-विषयक ६३ जन आगम और आगमेतर एवं जेनेतर स्रोतों से प्रभूत सामग्नी का संकलन किया गया है। तीन खण्डों में समाप्त जीवन कोश का यह प्रथम खण्ड मात्र है। इसमें प्रधानतया मूल श्वेताम्बर जैन आगमों से सामनी ली गई है और आगमों की टीकाओं, नियुक्तियों, भाष्यों, चूणियों आदि से भी प्रचुर सामग्नी का संकलन किया गया है किन्तु इसमें दिगम्बर जैन स्रोतों का पर्याप्त और समुचित उपयोग नहीं किया गया प्रतीत होता है, जिससे यह कोश सर्वमान्य न होकर एकांगी बन कर रह गया है तथा वर्धमान जीवन कोश नाम को सार्थक नहीं करता हैं। दिगम्बर जैन आगमों विषयक कतिपय प्रसंग और सन्दर्भ तो सर्वथा भ्रामक भी प्रतीत होते हैं। इस प्रकार एकांगी दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के कारण यह गरिमा और निष्ठापूर्ण प्रयास विवादास्पद बन गया है। कम-से-कम शोधप्रवर्तन की दृष्टि से प्रणीत-संकलित ग्रन्थों में वस्तु स्थिति का ही अंकन अपेक्षित है। सब मिला कर लेखक द्वय का यह महत्प्रयास अत्यन्त सराहनीय, उपादेय एवं उपयोगी है। जनवरी-मार्च, अनेकांत १९८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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