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लेश्या-कोश
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cosmogony and what not, which constitute about eighty percent of the early Agamic texts. In an age of subjective crisis, a subjective Mahavira would be more salable than an objective one attired in miaginary supernaturals.
-K. C. Lalwani
Jain Journal, July 1981 जिसमें भगवान महावीर के च्यवन से लेकर परिनिर्वाण तक सारे प्रसंगों का विवेचन किया गया है।
-श्याम जैन, इन्दौर वर्धमान जीवन कोश के दोनों खण्ड का अध्ययन कर रहा हूँ। आपके अथक परिश्रम से ये कोश तैयार हुए हैं। विद्वान संतों मुनिराजों और आचार्यों तथा विद्वानजनों और जैन आगमों को इसका अर्थ उजागर हुआ। इसको पढ़ने से कितने ही जिज्ञासाओं की जिज्ञासा को हल कर दिया गया इनसे युवकों को मनन करने के लिए ऐसे कोशों की महती आवश्यकता पुरी हुई है। इन कोशों की तैयार करने में आपने भाषा को सरल और मनमोहक बनाया है जिससे जिज्ञासु पाठकों तथा श्वेताम्बर-दिगम्बर आमना किसी को भी पढ़ने में आपत्ति नहीं हो सकती है।
-चाणकयालोप समीक्ष्य नन्थ एक अभिनव प्रयास है। लगभग १०० ग्रन्थों के आधार से यह ग्रन्थ सम्पादित है। इसमें भगवान महावीर के जीवन का सर्वाङ्गीण विवेचन है। सम्पादक द्वय का प्रयास स्तुत्य है ।
-मुनि श्री जयंतीलालजी आपके द्वारा प्रेषित 'वर्धमान जीवन कोश' नामक पुस्तक आज दिन मिली । पुस्तक के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद ।
पुस्तक बहुत ही उपयोगी है व इसके प्रकाशन में आप सर्व लोगों की मेहनत स्पष्ट झलकती है। कृपया मेरी बधाई स्वीकार करें।
-मन्नालाल सुराणा, जयपुर
१० सितम्बर १९८१ वर्धमान जीवन कोश, प्रथम खण्ड मिला है। कृतज्ञ हुआ। सच, कोशकार की कठिनाइयां एक कोशकार ही जान सकता है। ___ मैं जानता है जिस तरह का यह कोश है, उसके लिए आपको कितनी साधना करनी पड़ी होगी ? कितने कार्डस बनाये होंगे ? किस तरह उन्हें
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