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लेश्या-कोश गया है। ग्रन्थ में योग की व्युत्पत्ति, समास, विशेषण और प्रत्यय आदि विशेषण सहित परिभाषा भी दी गई है। ग्रन्थ में बताया गया है कि किस जीव में कितने योग होते हैं। विद्वानों द्वारा यह ग्रन्थ समाप्त हुआ तथा इसकी उपयोगिता स्वीकारी गयी है। यह प्रकाशन अर्हत प्रवचन की प्रभावना एवं जैन दर्शन के तन्वज्ञान के प्रति सर्व साधारण को आकृष्ट करने के लिए किया गया है। विद्वानों के लिए नन्थ अत्यन्त उपयोगी है। लगभग ३५० पृष्ठों की पक्की जिल्दयुक्त यह ग्रन्थ समादरणीय है। मई १९६४
-जैन जगत कोश की एक उपयोगिता है। भगवान महावीर के गुणों को अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करना चाहिए ।
योग कोश में योग सम्बन्धी काफी सामग्री एकत्रित भी हुई है। प्रकाशन अच्छा है।
-साध्वी श्री मधुस्मिता आगम व आगमेत्तर साहित्य में बिखरी ज्ञान राशि को विषमीकरण परियोजना के माध्यम से 'कोश' रूप में संग्रहित करने का चिन्तन एवं प्रयत्न अपने आप में विशेष उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है।
अपनी धुन के धनी स्व० मोहनलालजी बांठिया एवं भाई श्री श्रीचन्दजी चोरड़िया का इस दिशा में जो प्रयास हुआ है तथा वर्तमान में भी हो रहा हैअतिस्तुत्य एवं मूल्यपर्क है।
जैन दर्शन-समिति ने उनके कार्य का मूल्यांकन कर ग्रन्थ-प्रकाशन की और जो उत्साह दिखाया है-यह प्रसंशनीय हैं साथ ही उससे यह अपेक्षा है कि त्वरित गति के साथ वह अपने इस कार्य को आगे बढ़ाए।
'योग कोश' (प्रथम खण्ड ) जैन दर्शन समिति का सातवां पुष्प है। विद्वान सम्पादक श्री चोरड़ियाजी ने अपने ज्ञान, उपयोग, कौशल्य और शक्ति का सही दिशा में उपयोग कर योग-विषयक सामग्नी का प्रस्तुत ग्रन्थ में अच्छा चयन किया है। साथ ही उसके सार संदर्भ को अपनी प्रस्तावना में समाहित कर एक जिज्ञासु और शोधकर्ता के लिए काफी उपयोगी एवं सोचने समझने जैसी सामग्री प्रस्तुत की है। १ अक्टूबर १६६६
-बच्छराज संचेती
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