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लेश्या - कोश
की कठिनाई का कहना ही क्या ? कभी-कभी तो साधारण अध्येता इतनी उल्झन में फंस जाता है कि सब कुछ छोड़कर किनारे ही जा बैठता है । श्री मोहनलालजी बांठिया ने उन सब वर्णनों का क्रिया-कोश के रूप में एकत्र संकलन कर वस्तुतः भारतीय वाङ्गमय की एक उल्लेखनीय सेवा की है । मैं जानता * - यह कार्य कितना अधिक श्रमसाध्य है । चिन्तन के पथ की कितनी घाटियों को पार कर मंजिल पर पहुँचना होता है । प्रतिपाद्य विषय की विभिन्न भागों में वर्गीकरण करना अधिक उलझन भरा होता है परन्तु श्री बांठियाजी अपने धुन के एक ही व्यक्ति है । उनका चिन्तन स्पष्ट है । वे वस्तुस्थिति को काफी गहराई से पकड़ते हैं उसका उचित विश्लेषण करते हैं २६ अक्टूबर १९६६
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- उपाध्याय अमर मुनि
इसके सम्पादक श्री मोहनलाल बांठिया और श्रीचन्द चोरड़िया हैं और प्रकाशन किया है जैन दर्शन समिति, कलकत्ता ने, सन् १६६६ में । श्री बांठिया जैन दर्शन के सक्षम विद्वान हैं । उन्होंने जैन विषय कोश की एक लम्बी परिकल्पना बनाई थी और उसी के अन्तर्गत यह द्वितीय कोश के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इस कोश का भी संकलन दशमलव वर्गीकरण के आधार पर किया गया है और उनके उपविषयों की एक लम्बी सूची है । क्रिया के साथ ही कर्म विषयक सूचनाओं को भी इसमें अंकित किया गया है । लेश्या कोश के समान ही इस कोश के सम्पादन में भी पूर्वोक्त तीन बातों का आधार लिया गया है । इसमें लगभग ४५ ग्रन्थों का उपयोग किया गया है । जो प्रायः श्वेताम्बर आगम है । कुछ दिगम्बर ग्रन्थों का भी उपयोग किया गया है । सम्पादक ने उक्त दोनों कोषों के अतिरिक्त पुद्गल कोश, दिगम्बर लेश्या कोश, परिभाषा कोश को भी संकलन किया था, परन्तु अभी इनका प्रकाशन नहीं हो सका है । इस प्रकार के कोश जैन दर्शन को समुचित रूप से समझने में निसंदेह उपयोगी होते हैं ।
-डॉ० नेमीचन्द जैन
योग कोश पर प्राप्त समीक्षा
योग कोश ( प्रथम खण्ड ) सम्पादक - श्री श्रीचन्द चोरड़िया "न्यायतीर्थ” ( द्वय), प्रकाशक - जैन दर्शन समिति, १६-सी, डोवर लेन, कलकत्ता ७०००२६, मूल्य - १०० /- रुपये ।
जैन आगम विषय कोश ग्रन्थमाला का यह छठा पुष्प है जिसमें मन के चार योग, वचन के चार योग तथा काया के सात योग अर्थात् १५ योगों का विस्तार पूर्वक विवेचन है । आधुनिक दशमलव प्रणाली के आधार पर वर्गीकरण किया
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