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लेश्या-कोश
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गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सणिभूया य, असणिभूयाय । तत्थ णं जे ते सष्णिभूया ते णं महावेयणा । तत्थ णं जे ते असण्णिभूया ते णं अप्पवेयणतरागा । से तेण णं गोयमा ! एवं वुश्चइ - नेरइया नो सव्वे समवेयणा |
— भग० श १ । उ २ । सू ७५ से ७८
४- सभी नारकी समान लेश्या वाले नहीं है । क्योंकि नारकी दो प्रकार के होते हैं, यथा- - पूर्वोपपन्नक तथा पश्चादुपपन्नक । इनमें जो पूर्वोपपन्नक है वे विशुद्धश्यावाले और इनमें जो पश्चादुपपन्नक हैं वे अविशुद्धलेश्यावाले हैं । इसलिए ऐसा कहा जाता है कि सभी नारकी समानलेश्यावाले नहीं है ।
५- सभी नारकी समान वेदना वाले नहीं है । क्योंकि नारकी दो प्रकार के होते हैं, बथा - संज्ञीभूत और असंज्ञीभूत । इनमें जो संज्ञीभूत हैं वे महावेदनावाले हैं और इनमें जो असंज्ञीभूत हैं वे ( अपेक्षाकृत ) अल्पवेदनावाले हैं । इसलिए ऐसा कहा जाता है कि सभी नारकी समान वेदनावाले नहीं हैं ।
'६ – नेरइया णं भंते ! सव्वे समकिरिया ? गोयमा ! नो इणट्ठ े समट्ठे । सेकेणणं भंते! एवं वुञ्चइ - नेरइया नो सव्वे समकिरिया ?
गोयमा ! नेरइया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - सम्मदिट्ठी, मिच्छदिट्ठी, सम्मामिच्छदिट्ठी । तत्थ णं जे ते सम्मदिट्ठी तेसि णं चत्तारि किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया ।
तत्थ णं जे ते मिच्छदिट्टी तेसि णं पंच किरियाओ कज्जंति, तं जहा – आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अप्पश्चक्खाणकिरिया, मिच्छादंसणवत्तिया । एवं सम्मामिच्छदिट्टीणं पि । से तेण ेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ - नेरइया नो सव्वे समकिरिया ।
- भग० श १ । उ२ । सू ७६ ८०
६- सभी नारकी समान क्रियावाले नहीं हैं। क्योंकि नारकी तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा - ( १ ) सम्यग्दृष्टि, (२) मिथ्यादृष्टि और (३) सम्यग मिथ्यादृष्टिवाले । इनमें जो सम्यग्दृष्टि है, उनके चार क्रियाएं कही गई है, यथा-
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