________________
३४०
लेश्या-कोश (१) आरम्भिकी, (२) पारिनहिकी, (३) मायाप्रत्यया और (४) अप्रत्याख्यान क्रिया। इनमें जो मिथ्यादृष्टि है, उनके पांच क्रियाए कही गई है, यथा(१) आरम्भिकी, (२) पारिनहिकी, (३) मायाप्रत्यया, (४) अप्रत्याख्यान और (५) मिथ्यादर्शनप्रत्यया। इसी प्रकार सम्यगमिथ्यादृष्टि के भी पांचों क्रियाए समझना चाहिए । अतः सभी नारकी समान क्रियावाले नहीं हैं। '७–नेरइया णं भंते ! सव्वे समाउया ? सव्वे समोववन्नगा ?
गोंयमा ! णो इण? सम8 । से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइनेरइया नो सव्वे समाउया ? नो सव्वे समोव वनगा ?
गोयमा ! नेरइया चउब्विहा पण्णत्ता, तं जहा-(१) अत्थेगइया समाउया समोववनगा (२) अत्थेगइया समाउया विसमोववन्नगा (३) अत्थेगइया विसमाउया समोववनगा (४) अत्थेगइया विसमाउया विसमोववनगा। से तेण?णं गोयमा! एवं वुच्चइ–नेरइया नो सब्बे समाउया, नो सव्वे समोववन्नगा।
-भग० श १ । उ २ । सू ८१-८२ ७-सभी नारकी समान आयुष्यवाले और समोपपन्नक-एक साथ उत्पन्न होने वाले नहीं हैं। क्योंकि नारकी जीव चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा(१) समायुष्यक, समोपपन्नक ( समान आयु वाले और एक साथ उत्पन्न हुए ), (२) समायुष्क, विषमोपपन्नक (समान आयु वाले और पहले-पीछे उत्पन्न हुए) (३). विषमायुष्क, समोपपन्नक ( विषम आयु वाले, किन्तु एक साथ उत्पन्न हुए ) और (४) विषमायुष्क, विषमोपपन्नक ( विषम आयु वाले और पहले-पीछे उत्पन्न हुए ) अतः सभी नारकी समान आयु वाले और एक साथ उत्पन्न होने वाले नहीं हैं। ८-असुरकुमारा णं भंते ! सव्वे समाहारा ? सव्वे समसरीरा ? - जहा नेरइया तहा भाणियव्वा, नवरं-कम्म-वण्ण-लेस्साओ परिवत्तेयव्वाओ [ पुव्वोववन्ना महाकम्मतरा, अविसुद्भवण्णतरा, अविमुद्धलेसतरा । पच्छोववन्ना पसत्था । सेसं तहेव ] ।
एवं-जाव थणियकुमारा। 'ह-पुढविकाइयाणं आहार-कम्म-वण्ण-लेस्सा जहा णेरइयाणं । .. पुढविकाइया णं भंते ! सव्वे समवेदणा ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org