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लेश्या-कोश
४२३ '६८ २.२ भगवान् बुद्ध द्वारा प्रतिपादित छः अभिजातियाँ
"अहं खो पनानन्द, छलभिजातियो पंसापेमि। तं सुणाहि, साधुकं मनसि करोहि ; भासिस्सामी" ति। "एवं, भन्ते" ति खो आयस्मा आनन्दो भगवतो पच्चस्सोसि। भगवा एतदवोच"कतमा चानन्द, छलभिजातियो ? इधानन्द, एकच्चो कण्हाभिजातियो समानो कण्हं धम्मं अभिजायति । इध पनानन्द, एकच्चो कण्हाभिजातियो समानो सुक्कं धम्म अभिजायति । इध पनानन्द, एकच्चो कण्हाभिजातियो समानो अकण्हं असुक्कं निब्बानं अभिजायति । इध पनानन्द, एकच्चो सुक्काभिजातियो समानो कण्हं धम्म अभिजायति । इध पनानन्द, एकच्चो सुक्काभिजातियो समानो नुक्कं धम्म अभिजायति । इध पनानन्द, एकच्चो सुकाभिजातियो समानो अकण्हं असुक्कं निब्बानं अभिजायति ।
-अंगुत्तरनिकाय । ६ छक्वनिपातो महावग्गो । ३ छलाभिजाति सुत्तं ।
भगवान बुद्ध भी वर्ण की अपेक्षा से छ अभिजातियाँ बतलाते हैं किन्तु कृष्ण और शुक्ल वर्ण के आधार पर। यथा, (१) कृष्ण अभिजाति कृष्ण धर्म करने वाली, (२) कृष्ण अभिजाति शुक्ल धर्म करने वाली, (३) कृष्ण अभिजाति अकृष्ण-अशुक्ल निर्वाण धर्म करने वाली, (४) शुक्ल अभिजाति कृष्ण धर्म करने वाली, (५) शुक्ल अभिजाति शुक्ल धर्म करने वाली तथा (६) शुक्ल अभिजाति अकृष्ण-अशुक्ल निर्वाण धर्म करने वाली।
'६८३ पातंजल योगदर्शन में--
योगी के कर्म तथा दूसरों का चित्त कृष्ण, अशुक्ल-अकृष्ण तथा शुक्ल ऐसा त्रिविध प्रकार का होता है, ऐसा पातंजल योगदर्शन में वर्णित है। कर्माशुक्लाकृष्णं योगिनस्त्रिविधमितरेषां ।
-पायो० पाद ४ । सू ७
यह त्रिविध वर्ण षविध लेश्या, वर्ण अथवा जाति का संक्षिप्त रूपान्तर मालूम होता है।
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