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लेश्या - कोश
-३ सुभ भाव-लेस्या नै धर्म लेख्या कही, कर्म कटै इण न्याव । सुभ भाव लेस्या नै कर्म-लेस्या कही, पुन्य बंधे उदै भाव ||२७|| खायक खयोपशम भाव थी, पुन्य नहिं बंधै लिगार | उदै - -भाव सूं कर्म कटै नहि, तिण सूं सुभ लेस्या भाव च्यार ॥२८॥ सुभ-भाव-लेस्या नै धर्म लेस्या कही,
तिण सं खायक खयोपशम भाव । धर्म लेस्या सुं कर्म निर्जरा
कटै छे, कही
शुभ भाव लेश्याओं से कर्मों की क्षय होता है, अतः उन्हें धर्म लेश्या कहा गया है । उनसे पुण्य का बन्ध होता है और वे औदयिक भाव में समाविष्ट होती है अतः उन्हें कर्म लेश्या कहा गया है ।
इण न्याव ||२६|| -भीणीचरचा, ढाल १
क्षायिक और क्षायोपशमिक भाव से पुण्य का अंश मात्र भी बंध नहीं होता और औदयिक भाव से अंश मात्र भी कर्म का क्षय नहीं होता । ( शुभ लेश्याओं से पुण्य का बन्ध और कर्म का क्षय दोनों होते हैं । ) अतः वे चार भावों में समाविष्ट होती हैं ।
शुभ भाव लेश्या को धर्म लेश्या कहा गया है, क्षायोपशमिक भावों में समाविष्ट होती है । उनसे अतः उनका निर्जरा पदार्थ में समावेश किया गया है ।
-४ सुभ भाव लेस्या नै कर्म लेस्या कही,
तिण सूं कर्म लेस्या सुं कर्म बंधै
इण
कारण
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अतः वे क्षायिक और कर्मों का क्षय होता है
उदै भाव कहिवाय ।
121
छे,
आस्रव
शुभ भाव लेश्याओं को कर्म लेश्या कहा गया है अतः वे औदयिक भाव में समाविष्ट होती है । उनसे शुभ कर्म का बंध होता है इस दृष्टि से उनका आस्रव पदार्थ में समावेश किया गया है ।
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मांय ||३०|| -झीणीचरचा, ढाल १
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