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लेश्या - कोश
६६२५ सिद्धान्त ग्रन्थों में लेश्या सम्बन्धित पाठ
'१ नरक और लेश्या
आगमों में नारकी जीवों में कृष्णादि तीन अशुभलेश्या का कथन है । तत्त्वार्थ भाष्य में कहा है ।
" अशुभतर लेश्या । कापोतलेश्या रत्नप्रभायाम्, ततस्तीव्रतर संक्लेशाध्यवसाना कापोता शर्कराप्रभायाम्, ततस्तीव्रतर संक्लेशाध्यवसाना कापोतनीला बालुकाप्रभायाम् । ततस्तीव्रतर संक्लेशाध्यवसाना नीला पंकप्रभायाम् । ततस्तीव्रतर संक्लेशाध्यवसाना नीलकृष्णा धूमप्रभायाम् । ततस्तीव्रतर संक्लेशाध्यवसाना कृष्णा तमः प्रभायाम् । ततस्तीव्रतर संक्लेशाध्यवसाना कृष्णैव महातमः प्रभायामिति ।
- तत्त्वार्थ भाष्य अ २ | सू ३
नारकी में तीन अशुभलेश्या होती है । रत्नप्रभा नारकी में कापोतलेश्या होती है । उससे तीव्रतर संक्लेश-अध्यवसायवाली शर्कराप्रभा में कापोतलेश्या होती है । उससे तीव्रतर संक्लेश अध्यवसायवाली कापोत- नील लेश्या बालुकाप्रभा में होती है । उससे तीव्रतर संक्लेश अध्यवसाय वाली पंकप्रभा में नीललेश्या होती है । उससे तीव्रतर संक्लेश विचार वाली नीलकृष्णलेश्या धूमप्रभा में होती है । उससे तीव्रतर संक्लेश अध्यवसाय वाली कृष्णलेश्या तमप्रभा नारकी में होती है । उससे संक्लेश अध्यवसाय वाली सतवीं नारकी में ( महातमः प्रभा नारकी में ) कृष्णलेश्या होती है ।
'२ जीव समूहों में लेश्या
देवों की लेश्या
किण्हा नीला काऊ तेऊलेसा य भववंतरिया ।
जोइससोहंमीसाण
तेऊलेसा
कप्पे सणकुमारे माहिंदे चेव एएस पम्हलेसा तेणं परं
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मुणेयव्वा ॥ ११५६ ॥ बंभलोए य । सुक्ललेसाओ ||११६०॥
-- प्रवसा० गा ११५६-६०
भवनपति, वाणव्यंतर में कृष्ण-नील- कापोत और तेजोलेश्या होती है । ज्योतिषी, सौधर्म - ईशान देवों में तेजोलेश्या जाननी चाहिए । सनत्कुमार, माहेन्द्र
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