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लेश्या-कोश
४६५ तेजःपद्मलेश्यानां मिथ्यादृष्ट्याचप्रमत्तानां लोकस्याऽसंख्येयभागः। शुक्ललेश्यानां मिथ्यादृष्ट्यादि क्षीणकषायान्तांना लोकस्यासंख्येयभागः।
-सर्वार्थ सिद्धि अ १ । सू८ अप्रमत्तसंयत तक तेजो और पद्म लेश्या होती है। प्रथम गुणस्थान से क्षीण मोहनीय गुणस्थान तक शुक्ललेश्या होती है।
स्नातक तेरहवें व चौदहवें गुणस्थान वाले होते हैं। अतः तेरहवें गुणस्थान में शुक्ललेश्या व चौदहवां गुणस्थान अलेशी होता है। भगवती में स्नातक के लिए परम शुक्ललेश्या का भी व्यवहार हुआ है। यह द्रव्यलेश्या है क्योंकि स्नातक में भावलेश्या नहीं होती है। स्नातक अवस्था में शुक्ललेश्या से होने वाला वेदनीय कर्म का बंध रूक जाता है। गुणस्थान में लेश्या
अयदोत्ति छल्लेसाओ (गुणस्थानानि मिथ्यादृष्ट्यादीनि चत्वारि )।
---गोक० ३२६ असंयत गुणस्थान पर्यन्त अर्थात् मिथ्यादृष्टिगुणस्थान से चतुर्थ गुणस्थान तक छः लेश्या है।
(तेजोलेश्यायां ) गुणस्थानानि आद्यान्येव सप्तः ।
-गोक० ११६ । टीका तेजोलेश्या में आदि के सात गुणस्थान होते हैं। (पद्मलेश्यायां ) गुणस्थानानि ।
-गोक० ११६ । टीका पद्मलेश्या में प्रथम सात गुणस्थान होते हैं । ( शुक्ललेश्यायां ) गुणस्थानानि १३ ।
-गोक० ११६ । टीका शुक्ललेश्या में गुणस्थान प्रथम १३ है।
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