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mour - कोश
लेश्यापरिणामश्च कषायपरिणामं विनापि भवति, ततः कषायपरिणामानन्तरं लेश्यापरिणाम उक्तः, न तु लेश्यापरिणामानन्तरं कषायपरिणामः ।
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-- पण्ण० प १३ | सू २ | टीका
कषाय और लेश्या का अविनाभावी सम्बन्ध नहीं है । जहाँ कषाय है वहाँ लेश्या अवश्य है लेकिन जहाँ लेश्या है ( अन्ततः जहाँ शुक्ललेश्या है ) वहाँ कषाय नहीं भी हो सकता है । यथा केवलज्ञानी के कषाय नहीं होता है तो भी उसके लेश्या के परिणाम होते हैं, यद्यपि वह शुक्ललेश्या ही होती है । इस शुक्ललेश्या की उत्कृष्ट स्थिति – नव वर्ष कम पूर्व कोटि प्रमाण से प्रतिपादित होती है क्योंकि यह स्थिति सयोगी केवली में ही सम्भव है, अन्यत्र नहीं ; और सयोगी केवली अकषायी होते हैं । अतः यह कहा जाता है कि लेश्या - परिणाम कषाय परिणाम के बिना भी होता है ।
अब प्रश्न उठता है कि लेश्या और कषाय जब सहभावी होते हैं तब एक दूसरे पर क्या प्रभाव डालते हैं । कई आचार्य कहते है कि लेश्या - परिणाम कषाय परिणाम से अनुरंजित होते हैं
कषायोदयाऽनुरंजिता लेश्या ।
कषाय और लेश्या के पारस्परिक सम्बन्ध में अनुसंधान की आवश्यकता है । *६६३१ लेश्या और योग
लेश्या और योग में अविनाभावी सम्बन्ध है । जहाँ योग हैं वहाँ लेश्या है । जो जीव सलेशी है वह सयोगी है तथा जो अलेशी है वह अयोगी भी है । जो जीव सयोगी है वह सलेशी है तथा जो अयोगी है वह अलेशी भी है ।
कई आचार्य योग- परिणामों को ही लेश्या कहते हैं ।
यत उक्त प्रज्ञापनावृत्तिकृता ।
योगपरिणामो लेश्या, कथं पुनर्योगपरिणामो लेश्या ?, यस्मात् सयोगी केवली शुक्ललेश्यापरिणामेन विहृत्यान्तमुहूर्त्त शेषे योगनिरोधं करोति ततोऽयोगीत्वमलेश्यत्वं च प्राप्नोति अतोऽवगम्यते 'योगपरिणामों लेश्ये 'ति, स पुनर्योगः शरीरनामकर्मपरिणति विशेषः,
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