Book Title: Leshya kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 667
________________ लेश्या - कोश (१५) श्री भागचन्द्र जैन, एम० ए० शास्त्री - सीहोर आपके द्वारा प्रेषित 'लेश्या कोश' प्राप्त कर बहुत प्रसन्नता हुई । आपने इसके निर्माण, सम्पादन और प्रकाशन द्वारा एक बहुत बड़ी कमी की पूर्ति तो की ही है, एक अभिनन्दनीय और स्तुत्य कार्य भी किया है । इस प्रकाशन से जैन दर्शन के अध्येताओं की एक रहस्यमय गुत्थी सुलझी है । हमारा अभिनन्दन स्वीकार करें इस उपयोगी प्रकाशन, संपादन और निःशुल्क वितरण हेतु । (१६) डा० हरीन्द्र भूषण जैन, एम० ए० पी० एच० डी०, उज्जैन (म०प्र०) आपने एक विषय का उपस्थित कर सभी मैंने लेश्या कोश को बड़े मनोयोग के साथ पढ़ा । सर्वाङ्गीन अध्ययन कर उसे आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति से शोधकर्ताओ एवं सामान्य पाठकों को सुलभ बना दिया है | आपकी किसी एक विषय को उपस्थापन करने को यह पद्धति अनेक अनुसंधित्सुओं को इसी प्रकार कार्य करने की प्रेरणा देगी । इसमें आपका परिश्रम और मनोयोग स्पष्टतः दिखाई देता है । हमारी बधाई इस सुन्दर प्रकाशन के लिये स्वीकार करें । ५०५ (१७) डा० नागेन्द्र प्रसाद, एम० ए० डि० लिट० – नालन्दा पुस्तक मैं आद्योपान्त पढ़ गया । जैन दर्शन के एक अत्यधिक उपयोगी, महत्वपूर्ण और आवश्यक विषय का इतना सुन्दर सम्पादन आपने किया है कि प्रशंसा के लिये मेरे पास शब्द नहीं है । दिगम्बर शास्त्रों में निहित लेश्या सम्बन्धी सामग्री का यद्यपि इस ग्रन्थ में अभाव है तथापि इससे ग्रन्थ की मौलिकता और महत्व में कोई कमी नहीं आई है । इस महत्वपूर्ण कार्य सम्पादन के लिये पुनः बधाई और धन्यवाद | Dr. A. S. Gopani, MA. Ph. D., Head of the Deptt. of Ardhmagadhi, Bhartiya Vidya Bhawan College, Bombay-7. "Though you do not claim that the volume is an exhaustive and complete reference book on the subject-Lesya, it is almost so. Nothing relating to the topic directly or indirectly is left out. It is thus really Cyclopaedia on LESYA. You will be rendering a very great service to Jainism thro' the publication of other volumes contemplated by you. There is no doubt about it in my mind One is surprised at the lot of pains you have taken in conception and execu Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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