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लेश्या-कोश परिणाम भी विशुद्धतर होते हैं। इसी प्रकार अध्यवसाय के अशुभतर होने के साथ लेश्या की अविशुद्धि घटती है।
ऐसा मालूम पड़ता है कि छओं लेश्याओं में प्रशस्त-अप्रशस्त दोनों प्रकार के अध्यवसाय होते हैं।
पज्जत्ता असन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उवज्जित्तए x x x तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! तिनि लेस्साओ पनत्ताओ, तं जहा-कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेम्सा । x x x तेसि णं भंते ! जीवाणं केवइया अज्झवसाणा पन्नत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा अज्झवसाणा पन्नत्ता । ते णं भंते ! किं पसत्था अपसत्था ? गोयमा! पसत्था वि अपसत्था वि ।
-भग० श २४ । उ १ । सू ७, १२, २४, २५ । पृ० ८१५-१६ सव्वट्ठसिद्धगदेवे णं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु उववज्जित्तए० ? सा चेव विजयादिदेव वत्तव्वया भाणियव्वा। नवरं ठिई अजहन्नमनुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइ। एवं अणुबंधो वि । सेसं तं चेव ।
-भग० श २४ । उ २१ । सू १७ । पृ० ८४६
उपरोक्त पाठों से यह स्पष्ट है कि कृष्ण, नील तथा कापोतलेश्या वाले जीवो में प्रशस्त तथा अप्रशस्त दोनों अध्यवसाय होते हैं तथा शुक्ललेश्या में भी दोनों अध्यवसाय होते हैं । अतः छओं लेश्याओं में दोनों अध्यवसाय होने चाहिये ।
६६ ३४ किस और कितनी लेश्या में कौन से जीव'६६ ३४.१ एक लेश्या वाले जीव
कृष्णलेश्या वाले जीव-(१) तमप्रभा नारकी, (२) तमतमाप्रभा नारकी।
नीललेश्या वाले जीव-(१) पंकप्रभा नारकी।
कापोतलेश्या वाले जीव-(१) रत्नप्रभा नारकी, (२) शर्क राप्रभा नारकी।
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