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लेश्या-कोश नोट-आगमों में ब्रह्मचर्य महाव्रत को बत्तीस उपमा से सम्बोधित किया गया है; उसमें एक उपमा शुक्ललेश्या की भी है। सब व्रतों में जिस प्रकार ब्रह्मचर्यव्रत प्रधान है उसी प्रकार सब लेश्याओं में शुक्ललेश्या प्रधान है।' पंच संग्रह में चन्दर्षि महत्तर ने कहा हैx x x छल्लेसा जाव सम्मोत्ति ।
-पंच संग्रह भाग १ । सू ३१ टीका-सम्मोत्ति अविरत-सम्यग्दृष्टिस्तावत् षडपि लेश्या भवंति।
अर्थात् प्रथम गुणस्थान से चतुर्थ गुणस्थान तक छहों लेश्या होती हैं अतः मिथ्यादृष्टि में छहों लेश्या होती है। षटखंडागम में अनाहारिक मिथ्यादृष्टि में भी छहों भावलेश्या का उल्लेख मिलता है।
-षट् ० पु २ । पृ० ५२ तेसिं चेव भिच्छाइट्ठीणं पज्जत्तोघे भण्णमाणे अत्थि x x x दव्वभावेहिं छल्लेसाओ xxx तेसिं चेव अपज्जत्तोघे भण्णमाणे अस्थि xxx दव्वेण काउ-सुक्कलेसाओ, भावेण छलेस्साओ।
. -षट ० १ । १ । पु २ । पृ० ४२४-२५ . अर्थात् अणाहारिक मिथ्यादृष्टि में द्रश्य की अपेक्षा शुक्ललेश्या तथा भाव की अपेक्षा छहों लेश्यायें होती है। फिर षट्खंडागम में टीकाकार आचार्य वीरसेन ने कहा है। '६९ २८ देवता और तेजोलेश्या-लब्धि
तए णं सा बलिचंचा रायहाणी ईसाणेणं देविदेणं देवरना अहे, सपक्खि सपडिदिसिं समभिलोइया समाणी तेणं दिव्वप्पभावेणं इंगालब्भूया मुम्मुरभूया छारियभूया तत्तकवेल्लकब्भूया तत्ता समजोइभूया जाया यावि होत्था, तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य, देवीओ य तं बलिचंचारायहाणिं इङ्गालभूयं, जाव-समजोइन्भूयं पासंति, पासित्ता भीया, उतत्था सुसिया, १. प्रश्नव्याकरण अE
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