________________
लेश्या - कोश
४७१
अर्थात् कृष्णादि द्रव्यों के निमित्त से मुख्यता से स्फटिक की तरह आत्मा के जो परिणाम होते हैं उसमें इस लेश्या शब्द की प्रवृत्ति होती है ।
(७) लेश्या योग के अंतर्गत द्रव्य रूप है
योग द्रव्य कषाय उदय का कारण है । लेश्या से स्थिति पाक विशेष होता कषायोदय के अन्तर्गत कृष्णादि लेश्या के परिणाम हैं । किसी आचार्य
1
ने कहा है -- असल में लेश्या कषायोदय रूप है ।
(८) प्रज्ञापना लेश्या पद १७ । २ की टीका
कृष्णादि द्रव्य से उत्पन्न या कृष्णादि द्रव्य रूप लेश्या - कृष्णलेश्या । इसी प्रकार अन्य लेश्या का समझना चाहिए ।
जिस प्रकार षट खंडागम में छहों लेश्याओं को भाव से औदयिक भाव कहा गया है उसी प्रकार जीव काण्ड में भी भाव की अपेक्षा औदयिक भाव कहा गया है । षट्खंडागम में कहा है
―――――――
लेस्साणुवादेण किहलेसिय- णीललेस्सिय काउलेस्सिएस चवुट्टाणी
ओघं ।
-- षट्० सूत्र १-७, ५६ । पु ३
कृष्णादि तीन लेश्याओं में प्रत्येक के ओघ के समान पृथक्-पृथक् चार गुण स्थानों का सद्भाव प्रकट किया है ।
जिस प्रकार परमाणु द्रव्य सर्वात्मस्वरूप से अन्य परमाणु का स्पर्श करता है उसी प्रकार जो द्रव्य सर्वात्मस्वरूप से अन्य द्रव्य का स्पर्श करता है उसका नाम सर्व स्पर्श है ।
सामान्यतः ( ओघ आलाप ) पर्याप्त जीवों में लेश्या द्रव्य और भाव की अपेक्ष छः लेश्या व अलेशी भी है ।" (छः, द्रव्य लेश्या तथा छह भाव लेश्या ) है ।
अपर्याप्त सामान्य ओघ आलाप में लेश्या - द्रव्य लेश्या कापोत व शुक्ल, भाव लेश्या छहों कही है | 3 भले ही अनागत के समय मिध्यादृष्टि जीव राशि से १. षट्० १, २, ६०-६३ व जीव का० गा ५५४ पूर्वार्ध
२. षट्० पु० २ । टीका । पृ० ४२० - २१
३. षट्० पु० २ । टीका पृ० ४२२-२३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org