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१ – तत्वार्थ ४ । १ व २
लेश्या - कोश
देवाश्चतुर्निकायाः । तृतीयः पीतलेश्याः ।
३ – तत्वार्थ ४ । २३ तथा भाष्य
२– तत्वार्थ ४ । ७
पीतान्तरलेश्या । प्रथम दो देव निकाय ( भवनवासी व व्यंतर ) के कृष्ण, नील, कापोत और पीत लेश्या (द्रव्य) होती है । भावलेश्या छहों हो सकती है ।
- ज्योतिषि के पीतलेश्या
पीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु ।
सौधर्म - ऐशान कल्पों में पीतलेश्या होती है ।
सानत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक में पद्मलेश्या होती है । लांतक से सर्वार्थसिद्ध पर्यंत वैमानिकों में शुक्ललेश्या होती है । विशुद्ध, विशुद्धतर, विशुद्धतम फलित कर लेना चाहिए ।
देवों में भावलेश्या छहों ही होती है ।
४ साधु और लेश्या
साधु-निर्ग्रन्थ में छहों लेश्या हो सकती है । तत्वार्थ सूत्र कहा
लेश्या भवन्ति ।
पुलाकस्योत्तरास्तिस्रो बकुशप्रतिसेवनाकुशीलयोः सर्वा पढऽपि ॥
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कषायकुशीलस्य परिहारविशुद्ध रित्तस्स उत्तराः सूक्ष्मं संपरायस्य निर्ग्रन्थ स्नातकयोश्च शुक्लैव केवला भवति ।
अयोगः शैलेशी प्रतिपन्नेऽलेश्यो भवति ।
—तत्वार्थ अ 8 । ४६ । भाष्य
पुलाक में उत्तरा तीन लेश्या ( तेजो, पद्म, शुक्ललेश्या ) होती हैं । बकुश और प्रतिसेवन तथा कुशील में छहों लेश्या होती है । कषायकुशील निग्रन्थ में तीन लेश्या होती है— तेजोलेश्या, पद्मलेश्या व शुक्ललेश्या । सूक्ष्म संपरायचारित्र व निग्रन्थ-स्नातक में एक शुक्ललेश्या होती है । स्नातकों में अयोगिगुणस्थान में लेश्या नहीं है— अलेशी है ।
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