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लेश्या-कोश कभायोदय से अनुरंजित योग की प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं ।
(ग) मनोवाक्कायवर्गणापुद्गलद्रव्यसंयोगात् संभूतः आत्मनः परिणामो लेश्याऽभिधीयते।
-सिदी० प्र ४ । सू २८ योगवर्गणा के अन्तर्गत पुद्गलों की सहायता से होने वाले आत्म-परिणाम को लेश्या कहते हैं। लेश्या और योग (घ) जिहां सलेसी तिहाँ सजोगी, जोग कही तिहां लेस । ___ जोग लेस्या में कांयक फेर छै, जाण रह्या जिण रेस ॥६
झीणीचरचा ढाल १ जो जीव सलेश्य-लेश्या सहित होता है-वह सयोग-योग सहित होता है । जहाँ योग है, वहाँ लेश्या है। योग और लेश्या में क्या अन्तर है। इस रहस्य को जिनेश्वर देव जानते हैं । भाव लेस्या शुभ छ द्रव्य माहि, कहिये जीव सुचीन । आस्रव जीव निर्जरा निरवद, नव तत्व मांहि तीन ॥१०॥ शुभ-लेस्या जो आस्रव निर्जरा, तो किसा आस्रव रे मांय । जोग-आस्रव में सुभलेस्या छै, निर्जरा कर्म कटै तिण न्याय ॥११॥ पुन बंधै तिण सूं आस्रव, सुभलेस्या नै कहि स्वाम । सुभ लेस्या स्यूं कर्म कटै छ, तिण सू निर्जरा पदार्थ ताम ॥१२॥
-झीणीचरचा ढाल १ ___ अन्तिम तीन शुभ भाव लेश्याए छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव पदार्थों में जीव, आस्रव ( शुभ योग आश्रव ) और निर्जरा-इन तीन पदार्थों में समाविष्ट होती है। क्योंकि ये तीनों लेश्याए निरवद्य है।
शुभ लेश्या योग आश्रव में समाविष्ट होती है। शुभ लेश्या से कर्म क्षीण होते हैं अतः उसका निर्जरा में समावेश होता है।
शुभ लेश्या से पुण्य का बन्ध होता है, अतः भगवान ने उसे आश्रव कहा है। और उससे कर्म क्षीण होते हैं । इस दृष्टि से वह निर्जरा है।
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