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लेश्या-कोश ___ नोट-द्रव्य मन, द्रव्य वचन, द्रव्य कषाय आदि के साथ द्रव्य लेश्या का क्या सम्बन्ध रहा है। यह भी शोध का विषय है-द्रव्य मन, द्रव्य वचन व द्रव्य कषाय के पुद्गल चतुःस्पर्शी हैं जबकि द्रव्य लेश्या के पुद्गल अष्टस्पर्शी हैं। लेश्या और जीव कोई कहै नरक मांहे छ भाव लेस्या, कही टीका रै माय । पिणपाठमांहीकहीहुवैतोबतावो,तिणरोन्यायसुणोचित्तल्यायरे।।५७।। तेजू पद्म सुकल ए तीनू, धर्म लेश्या कही जिनराय । यां तीनां में काल करै तो, उपजै सद्गति मांय रे ।।६।। उत्तराध्येन चौतीसमें अध्येने, गाथा छपन सत्तावन मांय । ए भाव लेस्या आश्री वीर कह्मो छै, धर्म अधर्म द्रव्य न थाय ।।६।।
-झीणीचरचा ढाल १३ नरक में छः भाव लेश्याए वृत्ति में बतलाई गई है।
कृष्ण, नील, कापोत-ये तीन अधर्म लेश्याए जिनवर के द्वारा कही गई है। इन तीनों में मरने वाला दुर्गति में उत्पन्न होता है।
तेजस, पद्म और शुक्ल-ये तीन धर्म लेश्याए जिनवर के द्वारा बतलाई गई है। इन तीनों में मरने वाला सद्गति में उत्पन्न होता है।
उत्तराध्ययन अ ३४/५६, ५७ में अधर्म व धर्म का विभाग भगवान ने भाव लेश्या की दृष्टि से किया है। द्रव्य लेश्याओं का धर्म व अधर्म-यह विभाग नहीं बनता है।
प्राचीन चिकित्सा विज्ञान के अनुसार बीमारी के मुख्य तीन कारण बताये गये हैं—वात, पित्त और कफ । वायु जन्य बीमारियों का शमन लाल रंग के ध्यान से, पित्त या पित्त क्षय से होने वाली बीमारी का शमन पीले व शुक्ल रंग के ध्यान से और कफ दोष की बीमारियां हरे व नीले रंग के ध्यान से संभव है। यदि किसी को त्रिदोष के कारण व्याधि है तो आकाश तत्त्व के ध्यान से शांत हो सकती है। वर्तमान संपूर्ण रंग चिकित्सा इसी मान्यता पर आधारित है। मानसिक स्वास्थ्य और स्थिरता की दृष्टि से शरीर में पांचों रंगों का संतूलन अनिवार्य माना गया है। क्योंकि जैसे पांच तत्वों के सम्मिश्रण से मानव शरीर की रचना होती है, ठीक वैसे ही पांच रंगों की संतुलित भाव दशा में स्वस्थ मानव प्रकृति का निर्माण होता है।
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