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लेश्या-कोश
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शुभ लेश्या को आस्रव व निर्जरा कहा गया है। शुभ लेश्या से कर्म कटते हैं अतः उसे करणी की अपेक्षा निर्जरा कहा गया है। उसी शुभ लेश्या से पुण्य का बंध होता है, इस हेतु से उसे आश्रव कहा है। उसमें शुभ लेश्या को धर्म लेश्या कहा गया है और कर्म लेश्या भी कहा गया है। शुभ लेश्या से कर्म टूटते हैं, इस हेतु से उसे धर्म लेश्या कहा गया है। शुभ लेश्या से कर्म का बंध होता है, इस हेतु से उसे कर्म लेश्या कहा गया है।
विवेचन-पुण्य-पाप दोनों कर्म है और जो उनका कर्ता है वह आस्रव है, जिससे कर्म टूटते हैं उसे करणी की अपेक्षा से निर्जरा कहा गया है।
'१६ १७ लेश्या और करण
करणकालात् पूर्वमपि x x x तिसृणां विशुद्धानां लेश्यानामन्यतमस्या लेश्यायां वर्तमानो जघन्येन तेजो लेश्याया, मध्यम-परिणामेन पद्मलेश्यायां, उत्कृष्ट-परिणामेन शुक्ललेश्याया x x x |
-कर्म प्रकृति टीका
अर्थात् करण ( यथाप्रवृत्ति-अपूर्व-अनिवृत्ति करण ) की प्राप्ति के पूर्व भी मिथ्यात्वी के तीन विशुद्ध लेश्या का प्रवर्तन हो सकता है। जघन्यतः तेजो लेश्या, मध्यम परिणाम से पद्म लेश्या तथा उत्कृष्ट परिणाम से शुक्ल लेश्या का प्रवर्तन होता है।
___ नोट-तीन करणों में से एक प्रथम करण-यथा प्रवृत्ति करण अभव्य जीवों को भी प्राप्त हो सकता है। उनमें भी लेश्या छओं होती है । 'E१८ लेश्या और योग (क) द्रव्यान्येतानि योगान्तर्गतानीति विचिन्त्यताम् । सयोगत्वेन लेश्यानामन्वयव्यतिरेकतः ॥
-लोकप्र० गा २८५ अन्वय तथा व्यतिरेक से लेश्या के सयोगत्व की अपेक्षा ( लेश्या ) के द्रव्यों को योग के अन्तर्बत समझो । (ख) योगप्रवृत्तिलेश्या कषायोदयानुरञ्जिता भवति ।
-गोजी• गा ४८६ । संस्कृत छाया
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