________________
४५२
लेश्या-कोश छद्मस्थ तणी ज ताय, शुक्ललेस छै तेह थी। कर्म कटे इण न्याय, साधक क्षयोपसम भाव ए॥ केवली तणी कहाय, शुक्ल लेस छ तेह थी। कर्म कटे इण न्याय, भाव क्षायक साधक वलि ॥
-झीणो ज्ञान गा । ६५ से १०१ अन्तिम तीन लेश्याए-तेजो, पद्म और शुक्ल मोक्ष की साधक व बाधक दोनों हैं। औदयिक भाव लेश्याए मोक्ष की बाधक हैं। क्षायिक और क्षयोपशमिक भाव लेश्याए मोक्ष की साधक हैं। तीनों शुभ लेश्याओं से पुण्य का बंध होता है। इस न्याय से वे औदयिक भाव और इसी न्याय से वे मोक्ष की बाधक है। तेजो और पद्म लेश्या से कर्म की निर्जरा होती है, इस न्याय से वे क्षयोपशमिक भाव है और इसी न्याय से वे मोक्ष की साधक हैं। छद्मस्थ की शुक्ल लेश्या से कर्म की निर्जरा होती है, इस न्याय से वह क्षायोपशमिक भाव है और इसी न्याय से यह मोक्ष की साधक है। केवली की शुक्ल लेश्या से कर्म की निर्जरा होती है, इस न्याय से वह क्षायिक भाव है और इसी न्याय से वह मोक्ष की साधक है। ६६.१६ लेश्या और आस्रव-निर्जरा
शुभ लेश्या नै सोय, कहिये आस्रव निर्जरा। ताप न्याय अवलोय, चित्त लगाई सांभलो ॥१२०।। शुभ लेश्या कर तास, कर्म कटै तिण कारणे । कही निर्जरा जास, करणी लेखे जाणवी ।।१२१।। ते शुभलेस करीज, पुन्य बंधै तिण कारणे । आस्रव तास कहीज, वारु न्याय विचारियै ॥१२२।। शुभलेश्या नै सार, धर्म कर्म लेश्या कही । प्रत्यक्ष पाठ मझार, उत्तराध्ययन चौतीस में ॥१२३।। शुभ लेश्या सू ताम, कर्म कटै तिण कारणे । धर्म लेस कहि स्वाम, वारु न्याय विचारियै ॥१२४॥ शुभ लेश्या सू ताय, कर्म बंधै तिण कारणे । कर्म-लेस कहिवाय, न्याय नेत्र अवलोकिये ।।१२।।
-झीणो ज्ञान गाथा १२० से १२५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org