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लेश्या-कोश माहेन्द्र के वर्ण की तरह, 'पद्मपक्ष्मगौर' ही कहा है। तथा लांतक से मवेयक तक उत्तरोत्तर शुक्ल, शुक्लतर, शुक्लतम कहा है। अनुत्तरौपपातिक देवों के शरीर का वर्ण परम शुक्ल कहा है। टीकाकार ने एक प्राकृत गाथा उद्धृत की है-दो कल्पों में कनकतप्तरक्त आभा के समान शरीर का वर्ण होता है पश्चात् के तीन कल्पों के शरीर का वर्ण पद्मपक्षमगौर वर्ण होता हैं, तत्पश्चात् देवों के शरीर का वर्ण शुक्ल होता है।"
'EE.१४ नारकियों के नरकावासों का वर्ण; शरीरों का वर्ण तथा उनकी
लेश्याइमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरया केरसिवा वण्णेणं पन्नत्ता ? गोयमा! काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा भीमा उत्तासणया परमकण्हा वण्णेणं पन्नत्ता, एवं जाव अहेसत्तमाए।
-जीवा० प्रति ३ । उ १ । ( नरक )। सू ८३ । पृ० १३८-३६ टीका-रत्नप्रभायां पृथिव्यां नरकाः कीदृशा वर्णन प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-गौतम ! कालाः तत्र कोऽपि निष्प्रतिभतया मंदकालोऽप्याशंकयेत् ततस्तदाशंकाव्यवच्छेदार्थ विशेषणान्तरमाह'कालावभासाः' काल:-कृष्णोऽवभास:-प्रतिभाविनिर्गमो येभ्यस्ते कालावभासाः, कृष्णप्रभापटलोपचिता इति भावः xxx वर्णमधिकृत्य परमकृष्णाः प्रज्ञप्ताः । । इसीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरगा केरसिया वण्णेणं पन्नत्ता, गोयमा! काला कालोभासा जाव परमकण्हा वण्णणं पन्नत्ता एवं जाव अहेसत्तमाए।
-जीवा० प्रति ३ । उ २ ( नरक )। सू ८७ । पृ० १४१ टीका-रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकाणां भदन्त ! शरीरकानि की दशानि वर्णेन प्रज्ञप्तानि ? भगवानाह गौतम ! 'काला-कालोभासा' इत्यादि प्राग्वत्, एवं प्रतिपृथिवि तावद्वक्तव्यं यावदधःसप्तमपृथिव्याम् ।
इसीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा! एका काऊलेस्सा पन्नत्ता, एवं सकरप्पभाए
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