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लेश्या-कोश नारकियों का लेश्या परिणाम अनिष्टकर, अकंतकर, अप्रीतिकर, अमनोज्ञ तथा अनभावना होता है। मूल में पुद्गल-परिणाम का पाठ है। टीकाकार ने उपयुक्त संग्रहणीय गाथा देकर नारकी के अन्यान्य परिणामों को भी इसी प्रकार जानने को कहा है। अर्थात् पुद्गल-परिणाम की तरह लेश्या आदि परिणाम भी अनिष्टकर यावत् अनभावने होते हैं । 'CE '५ निक्षिप्त तेजोलेश्या के पुद्गल अचित्त होते हैं
कुद्धस्स अणगारस्स तेयलेस्सा निसट्ठा समाणी दूरं गता, दूरं निपतइ, देसं गता, देसं निपतइ, जहिं-जहिं च णं सा निपतइ, तहिंतहिं च णं ते अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति, जाव पभासेंति ।
-भग० श ७ । उ १० । सू ११ । पृ० ५३० क्रोधित अणगार-साधु द्वारा निक्षिप्त तेजोलेश्या, दूर या निकट, जहाँ-जहाँ जाकर गिरती है, वहाँ-वहाँ तेजोलेश्या के अचित्त पुद्गल अवभासित यावत् प्रभासित होते हैं। '२ तेजो लेश्या और देवों का च्यवन
तिहिं ठाणेहिं देवे चइस्सामिति जाणइ, तं जहा-विमाणाभरणाइ णिप्पभाई पासित्ता, कप्परक्खगं मिलायमाणं पासित्ता, अप्पणो तेयलेस्सं परिहायमाणिं जाणइ । इच्चेएहिं तिहिं ठाणेहिं देवे चइस्सामित्ति जाणइ ।
-ठाण० स्था ३ । उ ३ । सू ३६५ तीन हेतुओं से देव यह जान लेता है कि मैं च्यूत होऊगा१-विमान के आभरण को निष्प्रभ देखकर । २-कल्पवृक्ष को मुरझाया हुआ देखकर । ३-अपनी तेजोलेश्या ( कान्ति ) को क्षीण होती हुई देखकर ।
इन तीन हेतुओं से देव यह जान लेता है कि मैं च्यूत होऊंगा । 'EE ६ परिहारविशुद्ध चारित्री और लेश्या
लेश्याद्वारे-तेजःप्रभृतिकासूत्तरासु तिसृषु विशुद्धासु लेश्यासु परिहारविशुद्धिक कल्पं प्रतिपद्यते, पूर्वप्रतिपन्नः पुनः सर्वासु अपि कथंचिद् भवति, तत्रापीतरास्वविशुद्धलेश्यासु नात्यन्तसंक्लिष्टासु
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