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लेश्या-कोश
४४७ महद्धिक यावत् महाक्षमतावाले देव भी रूपत्व अवस्था से अरूपी रूप ( अमुर्तरूप ) का निर्माण करने में समर्थ नहीं हैं ; क्योंकि रूपवाला, कर्मवाला, रागवाला, वेदवाला, मोहवाला, लेश्यावाला, शरीरवाला तथा शरीर से जो मुक्त नहीं हुआ हो ऐसे शरीरयुक्त देव जीब में कृष्णत्व यावत् शुक्लत्व, सुगंधत्व, दुर्गन्धत्व, तिक्तत्व यावत् मधुरत्व, कर्कशत्व यावत् रूक्षत्व होता है। इसी हेतु से देव अरूपी ( अमूर्तरूप ) विकुर्वग करने में असमर्थ हैं।
सच्चेव णं भंते ! से जीवे पुवामेव अरूवी भवित्ता पभू रूविं विउवित्ताणं चिट्ठित्तए ? नो इण8 सम8 ( से केणणं) जाव चिट्टित्तए ? गोयमा! अहं एयं जाणामि जाव जण्णं तहागयस्स, जीवस्स अरूविस्स, अकम्मस्स, अरागस्स, अवेयस्स, अमोहस्स, अलेसस्स, असरीरस्स, ताओ सरीराओ विप्पमुक्कस्स नो एवं पन्नायइ, तं जहा-कालत्ते वा जाव--लुक्खत्ते वा, से तेणणं जावचिट्ठित्तए वा।
-भग० श १७ । उ २ । सू ११ । पृ० ७५७ महद्धिक यावत् महाक्षमतावाले देव भी यदि अरूपत्व को प्राप्त हो गये हों तो वे मूर्तरूप का निर्माण करने में समर्थ नहीं हैं ; क्योंकि अरूपवाला, अकर्मवाला, अवेदवाला, मोहरहित, अलेश्यावाला, शरीरवाला तथा शरीर से जो मुक्त हुआ हो-ऐसे अशरीरी जीव ( देव ) में कृष्णत्व यावत् शुक्लत्व, सुगंधत्व, दुर्गन्धत्व, तिक्तत्व यावत् मधुरत्व, कर्कशत्व यावत् रूक्षत्व नहीं होता है । इस हेतु से अरूपत्व को प्राप्त जीव मुर्तरूप विकुर्वण करने में असमर्थ होता है । 'CE १३ वैमानिक देवों के विमानों का वर्ण, शरीरों का वर्ण तथा लेश्या--
सोहम्मीसाणेसु ण भंते ! विमाणा कइवण्णा पन्नत्ता ? गोयमा ! पंचवण्णा पत्रत्ता, तं जहा-कण्हा नीला लोहिया हालिदा सुकिला, सणंकुमारमाहिंदेस चउवण्णा नीला जाव सुकिला, बंभलोगलंतएसुवि तिवण्णा लोहिया जाव सुकिल्ला, महासुक्कसहस्सारेसु दुवण्णाहालिद्दा य सुकिल्ला य ; आणयपाणयारणच्चुएसु सुकिल्ला, गेवजिविमाणा सुकिल्ला अणुत्तरोक्वाइयविमाणा परमसुकिल्ला वण्णणं पन्नत्ता।
-जीवा० । प्रति ३ । उ १ । सू २१३ । पृ० २३७
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