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लेश्या-कोश तथा मक्खलि गोशालक के संसार-विशुद्धिवाद में भी छः जीव भेदों का वर्णन हैं।
एकमन्तं निसिनो खो आयस्मा आनन्दो भगवन्तं एतदवोच"पूरणेन, भंते, कस्सपेन छलभिजातियो पंवत्ता-तण्हाभिजाति पंअत्ता, नीलाभिजाति पंअत्ता, लोहिताभिजाति पंअत्ता, हलिहाभिजाति पंअत्ता, सुक्काभिजाति पंअत्ता, परमसुक्काभिजाति पंअत्ता। __ "तत्रिदं, भंते, पूरणेन कस्सपेन तण्हाभिजाति पंअत्ता, ओरम्भिका सूकरिका साकुणिका मागविका लुद्दा मच्छघातका चोरा चोरघातका बन्धनागारिका ये वा पनं पि केचि कुरूरकम्मन्ता।" "तत्रिदं, भंते, पूरणेन कस्सपेन नीलाभिजाति पंअत्ता, भिक्खू कण्टकवुत्तिका ये वा पनं पि केचि कम्मवादा किरियवादा।" "तत्रिदं, भन्ते, पूरणेन कस्सपेन लोहिताभिजाति पंअत्ता, निगण्ठा एकसाटका।" "तत्रिदं, भन्ते, पूरणेन कस्सपेन हलिदाभिजाति पंअत्ता, गिही ओदातवसना अचेलकसावका।" "तत्रिदं, भंते, पूरणेन कस्सपेन सुक्काभिजाति पंबत्ता, आजीवका आजीवकिनियो।" "तत्रिदं, भन्ते' पूरणेन कस्सपेन परमसुक्काभिजाति पंवत्ता, नन्दो वच्छो किसो सङ्किच्चो मक्खलि गोसालो। पूरणेन, भन्ते, कस्सपेन इमा छलभिजातियो पंवत्ता" त्ति ।
-अंगुत्तरनिकाय । ६ छक्कनिपातो महागो । ३ छलभिजातिसुत्तं ।
आनन्द भगवान बुद्ध को पूछते हैं-'भदन्त ! पूरणकाश्यप ने कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र, शुक्ल तथा परम शुक्ल वर्ण ऐसी छः अभिजातियाँ कही हैं । खाटकी ( खटिक ), पारधी इत्यादि मनुष्य का कृष्ण जाति में समावेश होता है। भिक्षुक आदि कर्मवादी मनुष्यों का नील जाति में, एक वस्त्र रखनेवाले निग्नन्थों का लोहित जाति में, सफेद वस्त्र धारण करने वाले अचेलक श्रावकों का हारिद्र जाति में, आजीवक साधु तथा साध्वियों का शुक्ल शाति में तथा नन्द, वच्छ, किस, संकिच्च और मक्खली गोशालक का परम शुक्ल जाति में समावेश होता है।"
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