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लेश्या-कोश
३९९ सकता है-द्रव्यलेश्या के द्रव्यों के ग्रहण की निष्पन्नता अथवा भावलेश्या के एक लेश्या से दूसरी लेश्या में परिणमन की निष्पन्नता लेश्यानिवृत्ति ।
'९३ लेश्या और प्रतिक्रमण___ पडिकमामि छहिं लेस्साहिं—कण्हलेस्साए, नीललेस्साए काऊलेस्साए, तेऊलेस्साए, पम्हलेस्साए, सुक्कलेस्साए x x x तस्स मिच्छामि दुकडं ।
—आव० अ ४ । सू ६ । पृ० ११६८-६६ आदिल्ल तिप्णि एत्थं, अपसत्था उवरिमा पसत्थाउ । अपसत्थासु वट्टियं, न पट्टियं जं पसत्थासु ।। एसऽइयारो एया-सु होइ, तस्स य पडिकमामि त्ति । पडिकूलं वट्टामी, जं भणियं पुणो न सेवेमि ॥
-आव० अ ४ । सू ६ । हारि० टीका में उद्धृत मैं छ, लेश्याओं का प्रतिक्रमण करता हूँ-उनसे निवृत्त होता हूँ। मेरे लेश्या जनित दुष्कृत नि फल हों।
यदि तीन अप्रशस्त लेश्या में वर्तना की हो तथा तीन प्रशस्त लेश्या में वर्तना न की हो तो इस कारण से संयम में यदि किसी प्रकार का अतिचार लगा हो तो उसका मैं प्रतिक्रमण करता है। प्रतिकूल लेश्या में यदि वर्तना की हो तो मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि फिर उसका सेवन नहीं करूंगा।
९४ लेश्या शाश्वत भाव है___ 'पुवि भंते ! लोयंते, पच्छा अलोयंते ? पुवि अलोयंते पच्छा लोयंते ? रोहा! लोयंते य अलोयंते य जाव-(पुब्धि पेते, पच्छा पेते-दो वेते सासया भावा), अणाणुपुव्वी एसा रोहा ! x x x एवं लोयंते एक्केक्केणं संजोएयव्वे इमेहिं ठाणेहिं, तं जहा
ओवास-वाय-घणउदहि-पुढवि-दीवा य सागरा वासा । नेरइयाई अत्थिय, समया कम्माई लेस्साओ॥१॥
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