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लेश्या-कोश ९७ लेश्या परिमाणों को समझाने के लिये दृष्टान्त'६७१ जम्बू खादक दृष्टन्त(क) जह जंबुतरुवरेगो, सुपक्कफलभरियनमियसालग्गो।
दिह्रो छहिं पुरिसेहिं, ते बिती जंबु भक्खेमो ।। किह पुण ? ते बेतेको, आरुहमाणाण जीव संदेहो। तो छिदिऊण मूले, पाडेमु ताहे भक्खेमो ।। बिति आह एदहेणं, किं छिणेणं तरूण अम्हं ति ? साहामहल्लछिंदह, तइओ बेंती पसाहाओ। गोच्छे चउत्थओ उण, पंचमओवेति गेण्हह फलाई? छट्टो बेंती पडिया, एएच्चिय खाह घेत्तु जे ।। दिढतस्सोवणओ, जो बेंति तरू विछिन्नमूलाओ। सो वट्टइ किण्हाए, साहमहल्ला उ नीलाए ।। हवइ पसाहा काऊ, गोच्छा तेऊ फला य पम्हाए। पडियाए सुक्कलेसा, अहवा अणं उदाहरणं ।।
-आव० अ ४ । सू ६ । हारि० टीका (ख) पहिया जे छप्पुरिसा परिभट्टारणमझ देसम्हि ।
फलभरियरुक्खमेगं पेक्खित्ता ते विचिंतति ।। णिम्मूल खंध साहुवसाहं छित्तु चिणित्तु पडिदाइ। खाउ भलाई इदि जं मणेण वयणं हवे कम्मं ।।
-गोजी० गा ५०६-७ । पृ० १८२ जम्बू खादक दृष्टान्त
(ग) लेश्या कर्म उच्यते-जम्बूफल भक्षणं निदर्शनं कृत्वा स्कन्धविटप शाखानुशाखा-पिण्डिका छेदनपूर्वकं फलभक्षणं स्वयं पतितफल भक्षणं चौद्दिश्य कृष्णलेश्यादयः प्रवर्तन्ते ।
-तत्त्ववा० ४, २२, १० । पृ० १७१ छ, बंधु किसी उपवन में घूमने गये तथा एक फल से लदे भरे-पूरे अवनत शाखा वाले जामुन वृक्ष को देखा। सबके मन में फलाहार करने की इच्छा
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