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लेश्या-कोश
व्याख्या-जम्बूफलखादक छः पुरुषों के दृष्टांत से शास्त्रकारों ने इन लेश्याओं का स्वरुप उदाहरण द्वारा समझाया है वह इस प्रकार है
छः पुरुष रास्ता भूलकर जंगल में एक जामुन वृक्ष के नीचे बैठकर इस प्रकार विचार करने लगे-एक पुरुष बोला कि इस पेड़ को जड़मूल से उखाड़ देना चाहिए। दूसरा पुरुष बोला कि जड़मूल से तो नहीं स्कंध भाग काट देना चाहिए। तीसरे ने कहा कि बड़ी-बड़ी डालियां काट लेनी चाहिए, चौथा बोला कि जामुन के गुच्छों को ही तोड़ना चाहिए। पाँचवां बोला-सब गुच्छे नहीं केवल पके-पके जामुन तोड़ लेना चाहिए। छट्ठा बोला-वृक्षादि को काटने की क्या जरूरत है, हमें जामुन खाने से मतलब है तो सहज रुप से नीचे पके हुए जामुन ही खा लेना चाहिए।
जैसे उक्त पुरुषों की छः तरह की विचारधारणाए हुई, इसी तरह लेश्याओं में भी अलग-अलग परिणामों की धारा होती है। प्रारम्भ की तीन कृष्ण, नील, कापोत लेश्याए-अशुभ है और पिछली तीन-तेजो, पद्म, शुक्ल-शुभ लेश्याए होती है।
'६७.२ ग्रामघातक दृष्टान्त
चोरा गामवहत्थं, विणिग्गया एगो वेंति घाएह । जं पेच्छह सव्वं वा दुपयं च चउप्पयं वावि ।। बिइओ माणुस पुरिसे य, तइओ साउहे चउत्थे य । पंचमओ जुझते, छट्टो पुण तत्थिमं भणइ ।। एक्कं ता हरह धणं, बीयं मारेह मा कुणह एयं । केवल हरह धणंती, उपसंहारो इमो तेसिं ।। सव्वे मारेह त्ती, वट्टइ सो किण्हलेसपरिणामो। एवं कमेण सेसा, जा चरमो सुकलेसाए ।
-आव० अ ४ । सू ६ । हारि० टीका छः डाकू किसी ग्राम को लूटने के लिये जा रहे थे। छओं के मन में लेश्याजनित अपने-अपने परिणामों के अनुसार भिन्न-भिन्न विचार जागृत हुए। उन्होंने ग्राम को लूटने के लिए अलग-अलग विचार रखें--उनसे उनके लेश्या परिणामों का अनुमान किया जा सकता है।
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