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लेश्या-कोश '६५.५ लेश्या और धर्म ध्यान'६५.६ लेश्या और शुक्ल प्यान
अट्टारूदाणि वज्जित्ता, धम्मसुक्काणि झायए । ___ x x x , सुक्कलेसं तु परिणामे ॥
-उत्त० अ ३४ । गा ३१, ३२ अर्थात् आर्त्तरौद्रध्यान को छोड़कर धर्मध्यान और शुक्लध्यान को ध्यावित करना-शुक्ललेश्या का लक्षण है।
एदम्हि धम्मन्झाणे पीय-पउम-सुक्कलेसाओ तिणि चेव होंति, मंद मंदतर-मंदतमकसाएसु एदस्य माणस्स संभवुलंभादो। एत्थ गाहा–होंति कमविसुद्धाओ लेस्साओ पीय-पउम-सुक्काओ । धम्मज्माणोवगयस्स तिव्वमंदादिभेयाओ।
--षट् ० ५, ४, २६ । सू १३ । पृ० ७६ अर्थात् धर्मध्यान को प्राप्त हुए जीव के मंदादि भेदों को लिये हए क्रम से विशुद्धि को प्राप्त हुई पीत, पद्म व शुक्ललेश्या होती है ।
नोट-केवली के योगनिरोध होने पर शुक्लध्यान होता है परन्तु शुक्ललेश्या नहीं होती है अर्थात् अलेशी हो जाता है ।
कृष्ण नील कापोत एतीनू, अधर्म लेश्या कही जिनराय । या तीनां में काल करे तो, उपजै दुर्गति मांय ॥१८॥
-भीणी चर्चा ढाल १३ अर्थात् कृष्ण, नील व कापोत-ये तीन अधर्म लेश्याएं जिनवर के द्वारा कही गई है। इन तीनों में मरने वाला दुर्गति में उत्पन्न होता है।
एद म्हि धम्मज्झाणे पीय-पउम-सुक्कलेस्साओ तिण्णि चेव होंति, मंद-मंदयर-मंदतमकसाएसु एदस्स झाणस्स संभवुलंभादो। एत्थ गाहा
होंति कमविसुद्धाओ लेस्साओ पीय-पउम सुक्काओ। धम्मज्झाणोवगयस्स तिव्वमंद भेयाओ॥
-षट ० ५, ४, २६ । पृ १३ । पृ० ७६
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