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लेश्या-कोश
(घ) कृष्णलेश्याबलोपेतं श्वभ्रपातफलाङ्कितम् । रौद्रमेतद्धि जीवानां स्यात्पंचगुणभूमिकम् ।।
-ज्ञान० प्रक २६ । श्लो ३६ ___ (ङ) (रौद्र) उत्सन्नवधादिलिङ्गगम्यं नरकगतिगमनं कारणम वसेयं ।
–प्रसा० गा २७१ । टीका हिंसानंद, अनृतानंद, स्तेयानंद और परिग्रहानंद-ये चारों रौद्र ध्यान अति कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावालों के होते हैं। वे प्रमादाधिष्ठान और नरकगति में ले जाने वाले हैं। आत्मा इन अशुभ ध्यान से संक्लिष्ट हो कर तप्त लोहपिड जैसे जल को खींचता है उसी तरह कर्मों को खींचता है। यह ध्यान महाभय का कारण है और सुगति का प्रतिबंधक है। (च) कावोय-नील-कालालेसाओ तिव्वसंकिलिहाओ। रौदज्माणोवगयस्स कम्मपरिणामजणियाओ।
-ध्याश० गा २५ टीका-पूर्ववद् व्याख्येया, एतावाँस्तु विशेषः तीव्रसंक्लिष्टाःअतिसंक्लिष्टा एता इति । (छ) कृष्णलेश्याबलोपेतं श्वभ्रपातफलाङ्कितम् । रौद्रमेतद्धि जीवानां स्यात्पंचगुणभूमिकम् ॥
-ज्ञान० प्रक २६ । श्लो ३६ xxx । तदेतच्चतुर्विधं रौद्रध्यानम् अतिकृष्णनीलकापोतलेश्यावलाधानम् x x x ।
---राज. अह । सू ३५ (ज) ततश्चतुर्विधं रौद्र ध्यानं समुपजायते ।
पुंसोतिकृष्णलेश्यस्याविरतस्यैव तत्परं ।। तथा कापोतलेश्यस्य विरताविरतस्य च । प्रमादानामधिष्ठानं विरतस्य न जातुचित् ।।
-लो० अ६ । सू ३५
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