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लेश्या-कोश '३–नेरइया णं भंते ! सव्वे समवप्णा ! गोयमा ! नो इण? समहे ।
से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-नेरइया नो सव्वे समवण्णा ?
गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुवोववनगा य, पच्छोववनगा य । तत्थ णं जे ते पुवोववन्नगा ते णं विसुद्धवण्णतरागा। तत्थ णं जे ते पच्छोववनगा ते णं अविसुद्धवण्णतरागा० । से तेणढणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-नेरइया नो सव्वे समवण्णा ।
--भग० श १ । उ २ । सू ७१ से ७४
२- सभी नारकी समान कर्मवाले नहीं है क्योंकि नारकी जीव दो प्रकार के हैं, यथा १-पूर्वोपपन्नक और २-पश्चादुपत्रक ( पीछे उत्पन्न हुए )। इनमें जो पूर्वोपपन्नक है वे अल्पकर्मवाले हैं और उनमें जो पश्चादुपनक है, वे महाकर्मवाले हैं। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि सभी नारकी समान कर्मवाले नहीं है।
३-सभी नारकी समान वर्णवाले नहीं है। क्योंकि नारकी दो प्रकार के होते हैं, यथा-पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक । इनमें जो पूर्वोपपन्नक है वे विशुद्धवर्णवाले हैं, तथा जो पश्चादुपपन्नक है, वे अविशुद्धवर्णवाले हैं। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि सभी नारकी जीव समानवर्णवाले नहीं है।
'४-नेरइया णं भंते ! सव्वे समलेस्सा ?
गोयमा ! नो इण8 समढे। से केणढणं भंते ! एवं बुच्चइ-नेरइया नो सव्वे समलेस्सा ?
गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुन्चोववनगा य, पच्छोववनगा य । तत्थ णं जे ते पुवोववन्नगा ते णं विसुद्धलेस्सतरागा। तत्थ णं जे ते पच्छोववनगा ते गं अविसुद्धलेस्सतरागा। से तेणहणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-नेरइया नो सव्वे समलेस्सा। ५-नेरइया णं भंते ! सव्वै समवेयणा ? गोयमा! नो इण? सम? । से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-नेरइया नो सब्वे समवेयणा ?
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